Cyber Crime: गूगल में रिव्यू के चक्कर में युवक का अकाउंट हुआ खाली, धीरे धीरे ठगी ने लूट लिए साढ़े 3 लाख रुपए
देरी से मिल रही जानकारियां
साइबर ठगी के अधिकांश मामलों में पुलिस को बैंक खातों की जानकारी लेनी पड़ती है। इसके अलावा टेलीकॉम कंपनियों से ठगी में इस्तेमाल मोबाइल नंबरों की जानकारी लेते हैं। इन दोनों जानकारी के बिना पुलिस की जांच आगे नहीं बढ़ पाती है। बैंक वाले ठगी में इस्तेमाल बैंक खातों की जानकारी समय पर नहीं देते हैं, जिससे जांच प्रभावित होती है।अलग-अलग खातों
अधिकांश मामलों में ठगी की राशि को साइबर ठग जितने बैंक खातों में ट्रांसफर करते हैं, उतने बैंक प्रबंधनों से खातों की जानकारी लेनी पड़ती है। इसके बाद उन खातों को ब्लॉक करवाकर राशि को होल्ड कराते हैं। अधिकांश बैंक साइबर ठगों के द्वारा केवल पहले खाते में ट्रांजेक्शन की डिटेल दे पाते हैं। इसके बाद अगले लेयर के बैंक खातों की जानकारी देने में काफी समय लगाते हैं। इससे दूसरे बैंक खातों की राशि को होल्ड कराना मुश्किल हो जाता है।ऐसे होती है देरी
-बैंक खातों की जानकारी देने में देरी-ठगों ने दूसरे में जिस एटीएम बूथ से पैसा निकाला है, उसके फुटेज देने में आनाकानी
-ठगी के शिकार व्यक्ति बैंक जाते हैं, तो बैंक प्रबंधन एक्शन लेने के बजाय साइबर सेल भेज देते हैं
- एक बैंक खाते से दूसरे बैंक खाते में राशि जाने पर, उन खातों की जानकारी देने में देरी।
-ऑनलाइन ट्रांजेक्शन का लोकेशन देने में आनाकानी