सुबह होते ही गृहिणी घर मेंं छत्तीसगढ़ी व्यंजन जैसे गुड़हा चीला, अनरसा, सोहारी, चौसेला, ठेठरी, खुरमी, बरा, मुरकू, भजिया, मुठिया, गुजिया, तसमई, गुलगुला आदि बनाती हैं। वहीं, किसान अपने बैलों को नहलाते हंै। उनके सींग व खूर में पेन्ट या पालिस लगाकर कई प्रकार से सजाते हैं। गले में घुघरू, घंटी या कौड़ी से बने आभूषण पहनाते है तथा पूजा करके आरती उतारते हंै।
शास्त्रों के अनुसार अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव होता है। इसीलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण और दान-पुण्य का अत्याधिक महत्व होता है। इस दिन कुश से पूजा की जाती है। प्रकाशित पंचांग के आधार पर पोला का यह तिहार 27 अगस्त शनिवार को मनाया जाएगा।
पोला पर्व की पूर्व रात्रि को गर्भ पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है। अर्थात धान के पौधों में दूध भरता है। इसी कारण पोला के दिन किसी को भी खेतों में जाने की अनुमति नहीं होती। रात में जब गांव के सब लोग सो जाते हैं, तब गांव का पुजारी, बैगा, मुखिया तथा कुछ पुरुष सहयोगियों के साथ अर्धरात्रि को गांव के बाहर सीमा क्षेत्र के कोने-कोने में प्रतिष्ठित सभी देवी-देवताओं के पास जा-जाकर विशेष पूजा, आराधना करते हैं।
मिट्टी के खिलौने से सजता है आंगन
पोला में मिट्टी के बैलों व बर्तनों की पूजा करके पारंपरिक पकवानों को भोग लगाने के बाद ये खिलौने खेलने व मनोरंजन के लिए बच्चों को देते हैं। इसके पीछे का तर्क यह है कि मिट्टी या लकड़ी के बने बैलों से खेलकर बेटे कृषि कार्य तथा बेटियां रसोईघर व गृहस्थी की संस्कृति व परंपरा को समझते हुए जीवन मे योगदान देंगे। पलारी नगर में मिट्टी के खिलौने बेच रहे कुम्हार भूवन ने बताया कि पोला पर्व को देखते हुए उत्साह का माहौल है। बाजार में मिट्टी के बैल 20 रुपए, पोला 10 रुपए, जाता 20 रुपए तथा लकड़ी से बने बैल 50 रुपए तक में मिल रहा है।