इससे कॉलेज को एक छात्र का नुकसान होता है। इसलिए पेनाल्टी का प्रावधान किया गया है। पीडियाट्रिक विभाग में पिछले साल सुनंदा अग्रवाल ने आल इंडिया कोटे से फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया था। कुछ दिन विभाग में वह ठीक-ठाक काम करती रही। इसके बाद उन्होंने काम की अधिकता होते हुए कोर्स छोड़ने की बात कही। अपने सहपाठियों से कहा कि वे इतनी कठिन ड्यूटी नहीं कर पाएंगी। सहपाठियों ने उन्हें समझाया भी कि पीजी कोर्स में कड़ी मेहनत करनी होती है। ये केवल पीडियाट्रिक में नहीं, बल्कि हर विभाग में यही स्थिति है। बात एचओडी व अन्य फैकल्टी तक पहुंची।
सभी ने भी छात्रा को समझाइश दी कि पढ़ाई छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है। लगन व कड़ी परिश्रम पीजी का एक हिस्सा है। बाद में यह रूटीन में शामिल हो जाएगा। लेकिन छात्रा ने किसी की नहीं सुनी और कॉलेज को इस्तीफा भेज दिया। छात्रा का इस्तीफा मिलने के बाद कॉलेज प्रबंधन ने पेनाल्टी पटाने का नोटिस भेजा है। छात्रा ने अभी पेनाल्टी जमा नहीं किया है।
जुर्माने का प्रावधान इसलिए: पीजी कोर्स 3 साल का होता है। इसमें कोई भी छात्र या छात्रा काउंसिलिंग के बाद सीट नहीं छोड़ सकते। इसमें आरक्षित वर्ग के लिए 20 लाख व अनारक्षित वर्ग के लिए 25 लाख पेनाल्टी का प्रावधान है। ये सीट छोड़ने के लिए जुर्माने का नियम है। जबकि कोर्स पूरा होने के बाद दो साल बांड के तहत सेवा देना अनिवार्य है। ऐसा नहीं करने पर आरक्षित वर्ग के लिए 40 लाख व अनारक्षित वर्ग के लिए 50 लाख जुर्माने का प्रावधान है। पीजी को हर माह 65 से 75 हजार स्टायपेंड भी दिया जाता है। इसी तरह एमबीबीएस कोर्स भी बीच में पढ़ाई छोड़ने व दो साल की सेवा में नहीं जाने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
नेहरू मेडिकल कॉलेज के पीडियाट्रिक एचओडी डॉ. ओंकार खंडवाल ने कहा कि पीडियाट्रिक हो चाहे कोई भी विभाग, पीजी कोर्स में कड़ी मेहनत व लगन की जरूरत होती है। ये अभी से नहीं, जब से मेडिकल कोर्स शुरू हुआ है, तब से चल रहा है। हमने छात्रा को काफी समझाइश दी, लेकिन उन्होंने अनसुना कर दिया। सीट छोड़ने पर उन्हें जुर्माना भरना होगा।