शहर में इन प्रमुख स्थानों पर रावण दहन
1. डब्ल्यूआरएस कालोनी: यहां थम जाते थे ट्रेनों के पहिए
राजधानी में सबसे बड़ा रावण दहन उत्सव डब्ल्यूआरएस कालोनी में होता है। यहां इस बार सोमवार को 10 फीट ऊंचा रावण दहन किया जाएगा। समिति के संरक्षक विधायक कुलदीप जुनेजा ने बताया कि आतिशबाजी नहीं होगी। हर साल यहां राज्यपाल, मुख्यमंत्री समेत कई मंत्री व विधायक मंच पर होते थे। विशालकाय रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन होता था। उस दौरान गगनचुंबी आतिशबाजी का नजारा देखने का उत्साह ऐसा कि रेल पटरी तक लोगों की भीड़ रहती थी और ट्रेनों के पहिए थम जाते थे।
ऐतिहासिक रावणभाठा मैदान में दशहरा उत्सव के मुख्य अतिथि मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल होंगे। समिति के अध्यक्ष मनोज वर्मा बताया कि 150 साल पुराने इस मैदान पर रावण का पुतला स्थाई रूप में बना हुआ है, उसी का वध श्रीराम के पात्र धनुष बाण से करेंगे। दूधाधारी मठ से शाम 5 बजे बालाजी भगवान की पालकी निकलेगी, वानर सेना नहीं होगी। परंपरा कायम रखने के लिए पटाखे फोड़ेंगे, एक-दो अखाड़ा दल होंगे।
शाम 6 बजे से सादगी के साथ रावण दहन का उत्सव होगा। समिति के अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव ने बताया कि समिति के सदस्य ही श्रीराम की पूजा-अर्चना कर दशहरा उत्सव की रस्में पूरी करेंगे। भव्य आयोजन नहीं होगा। जबकि पहले रामलीला का मंचन सहित रंगारंग कार्यक्रम हुआ करता था।
चौबे-समता कॉलोनी, छत्तीसगढ़ नगर, सप्रेशाला मैदान, कोटा रामनगर, रोहिणीपुरम, भनपुरी और बिरगांव में भी इस बार प्रतीकात्मक उत्सव मनाने का निर्णय लिया है। इन जगहों पर भी शाम 6 से 7 बजे के बीच पूजा कार्यक्रम और 10 फीट का रावण दहन होगा।
जैतूसाव मठ के महंत रामसुंदर दास ने बताया कि साल में तीन बार चैत्र रामनवमी, दशहरा और दिवाली को भगवान श्रीराम का स्वर्ण से अभिषेक कर महाआरती करने की परंपरा मठ की रही है। वह रस्में पूरी होंगी। श्रद्धालुओं के लिए मास्क, सेनिटाइज और सोशल डिस्टेसिंग अनिवार्य रहेगा। इसी तरह वीआईपी राम मंदिरों में सादगी के साथ भगवान का अभिषेक पूजन होगा। जिसमें सेवा समिति के सदस्य ही शामिल हो सकेंगे।
सिर्फ दशहरा पर खुलता है प्राचीन कंकाली मठ
राजधानी का प्राचीन कंकाली मठ साल में एक बार दशहरा के दिन खुलेगा। इस मठ में मां काली के अस्त्र, शस्त्रों के दर्शन का अवसर मिलता है। इस दिन सोनपत्ती लेकर घर जाना, उसे देकर बड़ों से आशीर्वाद लेना और नीलकंठ पक्षी में भगवान नीलकंठेश्वर का दर्शन करना हमारी परंपरा रही है।
दहन के लिए तय किए गए नियम
– रावण सहित अन्य पुतलों की ऊंचाई 10 फीट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
– पुतला दहन किसी बस्ती और रहवासी इलाके में नहीं होगा।
– पुतला दहन खुले स्थान पर ही किया जाएगा।
– पुतला दहन कार्यक्रम में मुख्य पदाधिकारी सहित 50 लोग ही शामिल हो सकते हैं।
– आयोजन के दौरान केवल पूजा करने वाले लोग ही शामिल रहेंगे। भीड़ होने पर आयोजक की जिम्मेदारी होगी।
– पुतला दहन के दौरान वीडियोग्राफी करानी होगी और आने वाले हर व्यक्ति का नाम, पता, मोबाइल नंबर दर्ज करना होगा।
– आयोजन समिति को कार्यक्रम स्थल पर 4 सीसीटीवी कैमरे लगाने होंगे। जिससे किसी के संक्रमित होने पर कांटेक्ट ट्रेसिंग की जा सके।
– आयोजकों को सोशल मीडिया पर पहले से यह जानकारी देनी होगी कि कोविड-19 के कारण कार्यक्रम सीमित रूप से किया जाएगा।
– आयोजन में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति के मास्क पहनने, सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइजर का प्रयोग अनिवार्य होगा।
– रावण दहन स्थल से 100 मीटर के दायरे में अनिवार्य रूप से बैरिकेडिंग करनी होगी।
– आयोजन के दौरान किसी भी तरह के वाद्य यंत्र या म्युजिक सिस्टम बजाने की अनुमति नहीं होगी।
– अगर कोई व्यक्ति पुतला दहन कार्यक्रम के बाद संक्रमित हुआ तो उसके इलाज का खर्च समिति उठाएगी।
– एक आयोजन स्थल से दूसरे की दूरी कम से कम 500 मीटर होगी।