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रायपुर

Chhattisgarh में सरकारी बसें कब? अवैध वसूली पर लगेगी रोक, लोगों को साय सरकार के फैसले का इंतजार

Chhattisgarh: राज्य परिवन बसों का फिर से इंतजार हो रहा है। अगर साय सरकार यह लागू कर देगी तो छत्तीसगढ़ के लोगों के हित में यह अब बड़ा कइम होगा..

रायपुरOct 20, 2024 / 01:50 pm

चंदू निर्मलकर

Chhattisgarh, chhattigarh news
Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ की सड़कों पर सरकारी बसों चलाने को लेकर फिर आवाज उठने लगी है। इसकी वजह केवल लाभदायक सड़कों पर निजी बसों को चलाया जाना है। ग्रामीण इलाकों और अंदरूनी क्षेत्रों में नुकसान को देखते हुए आज भी बसों का संचालन नहीं हो रहा है। बिना टाइम टेबल और मनमाना किराया वसूल करने के बाद भी लोग मजबूरी में निजी बसों में सफर करने पर मजबूर है। राज्य परिवहन निगम की बसें चलाने से परिवहन माफिया की मनमानी पर अंकुश लगेगा। वहीं अवैध वसूली और यात्रियों के साथ मारपीट करने वाले गुर्गों पर रोक लगेेगी। साथ ही राज्य सरकार को राजस्व और बेरोजगारों को रोजगार भी मिलेगा।

Chhattisgarh: 21 साल पहले शुरू हुई साजिश

सरकारी यात्री बसों को बंद करने की साजिश 1999 में अविभाजित मध्यप्रदेश राज्य के समय शुरू हुई थी। यह राज्य निर्माण के बाद संसाधनों और बसों के नहीं मिलने पर 31 दिसंबर 2002 को थम गया। इन 21 सालों में सरकारी बसों का नामों निशान तक मिट गया। यहां तक की युवा पीढ़ी को मालूम तक नहीं है कि राज्य में कभी सरकारी बसों सड़कों पर चलती थी।
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Chhattisgarh: इसका कारण 1992 तक केंद्र और तात्कालीन मध्यप्रदेश सरकार पूरा अंशदान देती थी। लेकिन, इसके बाद राज्य ने अपना 29.50% अंशदान बंद किया, तो केंद्र से भी 70.50% अंशदान आना बंद हो गया। 1999 में कांग्रेस की दिग्विजय सरकार ने सरकारी यात्री बसों को बंद करने का प्रस्ताव दे दिया। शुरुआती विरोध- प्रदर्शन ने उम्मीद बंधी थी। लेकिन, 1 नवंबर 2000 को राज्य निर्माण के बाद बंटवारे को देखते हुए छत्तीसगढ़ में बसों का भेजना बंद हो गया।

172 करोड़ का कर्ज

बंटवारे के पहले ही सितंबर 2002 में बसों को बंद करने की घोषणा निगम से 172 करोड़ का कर्ज वापस लेने सारी अचल संपत्तियों को सरकार ने लिया। राज्य के 10 डिपो और वर्कशॉप में कंडम पड़ी बसों को शासन ने कब्जे में लेकर नीलाम कर दिया। 2003 में सभी प्राइवेट बसों को सारे रूट देकर परमिट जारी किए गए।

प्राइम रूट से करें सफर की शुरुआत

सपनि को शुरू करने प्राइम रूट को चिह्नांकित कर इसे मुनाफे में लाने का प्रयास किया जा सकता है। इसके लिए मार्ग तय कर सबसे पहले प्राइम रूट में सरकारी बसें शुरू की जा सकती है। शुरुआती दौर में राजधानी रायपुर से जगदलपुर, बिलासपुर, अंबिकापुर और रायगढ़ को शुरू किया जा सकता है। ऐसे प्राइम रूट पर सपनि को चलाने में मदद मिलेगी। साथ ही सरकारी बसों की टाइमिंग और किराया कम होने पर यात्रियों को राहत मिल सकती है।

डिपों में बसें हो गई कंडम

मध्यप्रदेश शासन द्वारा बसों को नहीं भेजने और गिनती की बसों का किसी तरह संचालन हो रहा था। इसके बाद 31 दिसंबर 2002 को बसों का बंटवारा किया गया। लेकिन लीज और कंडम बसों को भेजा गया। लेकिन, सड़कों पर संचालन शुरू होने के पहले ही सितंबर 2002 में छत्तीसगढ़ के तात्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने परिवहन निगम को बंद करने का फैसला लिया। इसके बाद लीज वाली बसों को उनके मालिक वापस ले गए। वहीं बसें डिपो में कंडम हो गईं। जिसे बाद में निविदा के जरिए इन्हें नीलाम किया गया।

इस तरह प्राइवेट बसों के पहिए चलने लगे

प्राइवेट बसों को पहले चरण में चुने हुए कमाऊ रूट पर अनुमति दी गई। कोई परेशानी न हो, इसलिए सभी प्रमुख शहरों तहसीलों और ब्लॉक स्तर पर जोड़ने परमिट जारी किया गया। इसके बाद धीरे-धीरे बसों की संख्या बढ़ने पर नए परमिट जारी किए गए। लेकिन, कुछ समय बाद ही नुकसान वाले मार्गों को छोड़कर बसे दूसरे रूट में डायवर्ट हो गईं।
1962 में रापनि की स्थापना की गई

1700 लोगों ने वीआरएस लिया निगम के बंद होने पर।

2738 कर्मचारी मिले राज्य निर्माण के बाद बंटवारे में।

200 करोड़ की संपत्ति का मालिक था निगम।
3600 सेज्यादा बसों का बेड़ा।

2003 से अनुबंधित बसों का संचालन।

325 कर्मचारी रापनि का हिस्सा, इनमें करीब 300 प्रतिनियुक्ति पर।

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