छत्तीसगढ़ी परंपरा के अनुसार-भारत के हर राज्य में दीपावली को मनाने का तरीका काफी अनोखा है, हम अगर बात करें छत्तीसगढ़ और यहां के ग्रामीणों की तो यहां के लोग अपनी परंपराओं के साथ दीपावली का पर्व लगभग एक सप्ताह तक अलग-अलग रूपों में मनाते हैं और यहां के तथ्य भी काफी रोचक है।
सबसे पहले बात करें ग्रामीण क्षेत्रों की तो यहाँ त्योहारों में परंपराओं के साथ-साथ मनोरंजन और लोक संस्कृति का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस से त्यौहार की शुरुआत होती है जिस दिन घर के मुख्य द्वार में तेरह मिट्टी के दिए जलाकर एक साथ सजाया जाता है। अगले दिन चौदस मनाया जाता है जिसमे चौदह दिए सजाया जाता है । इसके बाद अगले दिन मुख्य त्योहार के रूप में लक्ष्मी पूजा मनाया जाता है जिसमे व्रत विधान से धन धान्य प्रदान करने वाले कीमती वस्तुओं का पूजन अर्चन किया जाता है। ठीक इसी दिन गांव के लोग एक दूसरे के घरों में जाकर आंटे से बने जलते दीपक पहुंचाते है और सुख संपत्ति की प्रार्थना करते है।
रात में सभी लोग अपने-अपने घरों में माता लक्ष्मी की पूजा करते है । रात्रि 12 बजे के बाद गांव के बड़े बुजुर्ग एवं महिलाएं बड़े धूम धाम से गाय के गोबर और मिट्टी से बने भगवान शिव जी और माता पार्वती की प्रतिमा को बहुत ही पारंपरिक रूप से सजाकर बाजे-गाजे के साथ हर्षोल्लास मनाते हुए गांव के गौरा चौरा में लाकर रखते है।इस दौरान गांव की महिलाओं तथा लड़कियों के द्वारा मिट्टी की कलस को धान की बालियों और दीपक से सजाकर गौरी-गौरा के इर्द गिर्द रखा जाता है।
परंपरा के तहत गौरी गौरा गीत के साथ रात भर गौरी गौरा का विवाह उत्सव मनाया जाता है और अगले दिन गांव के यादव समाज जिसे राऊत कहा जाता है इनके माध्यम से घर घर जाकर गाय के लगे में सोहई बांधा जाता है। सोहई को स्वयं राऊत लोग अपने हाथों से बनाते है जो की काफी सुंदर दिखता है। इस प्रकार बाजे गाजे की धूम पूरे ग्रामीण अंचल में सुनाई देती है तब तक शाम का वक्त हो जाता है। अब बैलों या बछड़ों को गोवर्धन के लिए साहड़ा देव पर ले जाया जाता है और खूब आतिशबाजी के बीच गोवर्धन मनाया जाता है।
ग्रामीण बच्चे इस दौरान खूब फटाके जलाते है और उत्साह के साथ त्योहार मनाते है। इसके बाद अगले दिन गांव के लोग मातर पूजा का त्योहार के लिए तैयारी करते है इसमें भी यादव (गहीरा/अहिरा) समाज के लोग दोहा गाकर और गंडवा बाजा के हाथों में लठ्ठ लिए खूब नाचते गाते गांव के ठाकुर देव ,कृष्ण देव आदि देवताओं की उपासना करते है और गांव के गौठान में नियम के साथ पूजा अर्चना करते है। इस दौरान ग्रामीण लोगों का उत्साह और अधिक दिखाई देता है। छत्तीसगढ़ियों का यह मनमोहक त्योहार अपने आप में काफी रहस्य और रोमांच के साथ मनाया जाता है और पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाता है।
हरेंद्र साहू
शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव छत्तीसगढ़ BAMC-1st sem