Chhattisgarh News: कलेक्टर ने तहसीलदार को दी जांच की जिम्मेदारी
रायपुर कलेक्टर डॉ. गौरव सिंह ने मामले की शिकायत आने पर तहसीलदार को जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी। तहसीलदार जयेंद्र सिंह ने जांच पूरी कर कलेक्टर को रिपोर्ट सौंप दी है। मिली जानकारी के अनुसार, रिपोर्ट में कई चौांकने वाले तथ्य हैं। सरकारी परिसर में निजी बिल्डिंग देखकर सबसे पहले उन्होंने सरकारी स्कूल के प्रधानपाठक और निजी स्कूल के प्राचार्य समेत पटवारी और स्कूल स्टाफ से बात की। पटवारी पंचराम गायकवाड़ ने बताया कि प्राइमरी स्कूल की मांग पर पहले सीमांकन किया गया था। तब पूरी जमीन सरकारी स्कूल की निकली। सरकारी जमीन पर निजी स्कूल चलाया जा रहा है। इस दौरान निजी स्कूल के प्राचार्य केआर साहू ने स्वीकार किया कि जिस जगह पर उनका स्कूल चल रहा है, वह सरकारी है। 1995 से प्राइवेट हाई स्कूल शुरू हुआ। इसके बाद हायर सेकेंडरी शुरू हुआ। 2019 में जिला शिक्षा कार्यालय से प्राथमिक शाला की मान्यता प्राप्त कर नर्सरी की कक्षाएं शुरू की है।
कब्जे के पीछे दान की कहानी… नाम न दिया, निजी स्कूल खोल दिया
1995 से पहले गांव में मिडिल स्कूल नहीं था। बच्चे पढ़ने के लिए दूसरे गांव जाते थे। नेकदिल जगमोहन लाल ने गांव में ही मिडिल स्कूल खुलवाने की ठानी। उनका मन था कि उनकी जमीन पर स्कूल बने। वह जमीन ग्राम पंचायत के करीब थी। प्राइमरी स्कूल दूर था। दोनों स्कूल एक ही जगह खुलें इसलिए तय हुआ कि जगमोहन लाल की जमीन का इस्तेमाल जनहित के कामों में किया जाएगा। जगमोहन ने इसके बाद सरकारी स्कूल की जमीन में मिडिल कक्षाओं के लिए 4 कमरे बनवाए। इसके लिए उन्होंने ग्राम पंचायत से मंजूरी ली थी। स्कूल से उद्घाटन से पहले मांग उठी कि स्कूल का नाम दानदाता के नाम पर रखा जाए। माध्यमिक शिक्षा मंडल ने इसे नामंजूर कर दिया। फिर इसी जगह पर जगमोहन लाल के नाम पर निजी स्कूल खुल गया। इधर, सरकारी कैंपस में जगह की कमी के चलते हाई-हायर सेकंडरी स्कूल नेशनल हाईवे के पास बनाना पड़ा। यहां भारी गाड़ियों के आने-जाने से हर पल हादसे का डर रहता है।
मान्यता देकर जिला शिक्षा कार्यालय भी सवालों में घिर चुका
शासकीय प्राथमिक शाला के ठीक सामने सरकारी जमीन पर निजी स्कूल को जिला शिक्षा कार्यालय ने साल 2019 में मान्यता दी है। इसका विपरीत प्रभाव शासकीय प्राथमिक शाला की छात्र संया पर पड़ने लगा। आखिर कैसे और किस नियम के तहत शासकीय प्राथमिक शाला की जमीन पर उसी के ठीक सामने एक निजी प्राथमिक शाला को मान्यता दी गई, यह ज्वलंत सवाल है। देखा जाए तो धरसीवा क्षेत्र में ऐसे कई निजी स्कूल हैं जिनके पास खुद के मैदान नहीं। किसी के पास बिल्डिंग नहीं। शिक्षकों ने कहा- निजी स्कूल के चलते बच्चों की जान खतरे में पड़ी
Chhattisgarh News: शासकीय स्कूल के प्रधानपाठक व टीचरों का ने बताया कि शासकीय स्कूल की जमीन पर निजी स्कूल होने से अक्सर समस्याएं आती हैं। उसी परिसर में निजी स्कूल होने से हमेशा खतरा बना रहता है क्योंकि मुय द्वार बंद नहीं कर पाते। सामने ही तालाब है। लंच समय निजी स्कूल के कारण गेट बंद न होने से बच्चे बाहर निकलते रहते हैं। सामने ही तालाब है। यदि निजी स्कूल इस परिसर में न होता तो मुय द्वार का गेट बंद रहता। वहीं, बच्चो के लिए मैदान भी बेहतर रहता। नेशनल हाईवे के किनारे स्कूल होने से हादसे का डर भी बना रहता है।
तहसीलदार जयेंद्र सिंह ने पत्रिका को बताया कि यह तो साफ है कि जिस जमीन पर निजी स्कूल चल रहा है, वह सरकारी स्कूल की जमीन है। मामले की जांच रिपोर्ट कलेक्टर को भेज दी है।