CG News: कांकेर में अटैच
CG News: निलंबन अवधि में वे सरकारी मेडिकल कॉलेज कांकेर में अटैच रहेंगे। शासन के नियमानुसार एक लाख की ज्यादा से खरीदी टेंडर से की जाती है, लेकिन डॉ. वर्मा तब डीडीओ भी थे। उन्होंने 2,65,29,296 रुपए के क्रय आदेश कोटेशन के आधार पर किया। जांच कमेटी ने इसे घोर वित्तीय उल्लंघन माना था। सस्पेंशन आर्डर में भी खरीदी में घोर वित्तीय अनियमितताएं का उल्लेख है। पत्रिका ने मार्च में जब डॉ. वर्मा को शासन ने आरोप पत्र जारी किया तो इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया था। आरोप पत्र में शासन ने ये भी कहा था कि कर्तव्य पालन में जानबूझकर लापरवाही बरती गई। इसे स्वेच्छाचारिता का नाम भी दिया गया। यही नहीं इस कृत्य को सिविल सेवा का उल्लंघन भी माना गया।
दोपहर में कर दिया अपना चेंबर खाली, चर्चा का विषय
डॉ. वर्मा ने सोमवार की दोपहर पीएसएम का एचओडी कक्ष दोपहर में ही खाली कर दिया था। यह कॉलेज में चर्चा का विषय बना रहा। तब फैकल्टी समेत दूसरे स्टाफ खुसूर-फुसूर करने लगे थे कि कहीं वे सस्पेंड तो नहीं हो गए। हालांकि उनके निलंबन का हल्ला शुक्रवार से हो रहा था।
अप्रैल 2020 में मिला वित्तीय अधिकार
डॉ. वर्मा को वित्तीय अधिकार शासन ने डॉ. वर्मा को 6 अप्रैल 2020 को वित्तीय अधिकार दिया था। तब तत्कालीन डीएमई डॉ.एसएल आदिले को रिटायर होने के बाद संविदा में एक्सटेंशन दिया गया था। संविदा अधिकारी होने के कारण डीएमई को वित्तीय अधिकार नहीं था डॉ.वर्मा को डीडीओ बनाया गया था। उनके कार्यभार संभालने के ठीक पहले प्रदेश में 18 मार्च 2020 को कोरोना का पहला केस मिला। सितंबर 2020 में पहली लहर का पीक भी था। तब सभी मेडिकल कॉलेजों में वायरोलॉजी लैब के लिए किट से लेकर पीपीई किट, मॉस्क, जरूरी उपकरण की खरीदी की गई। इसमें जमकर अनियमितता बरती गई थी।
डेढ़ साल तक दबी रही फाइल, विधायक के सवाल पर कार्रवाई
चिकित्सा शिक्षा विभाग ने जांच कमेटी की रिपोर्ट मिलने के बाद शासन को पत्र लिखकर 6 सितंबर 2022 में डॉ. वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की थी। फाइल डेढ़ साल दबी रही। मार्च में राजधानी के एक विधायक ने विधानसभा में मामला उठाया, तब कहीं जाकर शासन ने उन्हें आरोप पत्र दिया। डॉ. वर्मा 2022 में खरीदी में अनियमिता समेत 4 मामलों में दोषी पाए गए थे। कमेटी ने जांच में ये भी पाया कि पीएसएम में पदस्थ डॉ. आशीष सिन्हा के सीआर पर जानबूझकर प्रतिकूल टिप्पणी की गई। साथ ही 7.30 लाख रुपए के फर्नीचर व कम्प्यूटर खरीदी पर कमेटी ने जांच में पाया कि ये अधिकार डॉ. वर्मा को नहीं था। उन्होंने छग नर्सेस काउंसिल कार्यालय के लिए ये खरीदी की थी। यही नहीं एक निजी कॉलेज दुर्ग में बीएससी नर्सिंग की 40 सीटें देने की अनुशंसा की थी, जो नियमानुसार सही नहीं था।