छत्तीसगढ़ में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 90 में से 68 सीट पर जीत हासिल हुई थीं। उस समय भाजपा को केवल 15 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग स्थिति देखने को मिली। यहां 11 में 8 सीट भाजपा के खाते में आईं। इस चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशियों को केवल 24 विधानसभा सीटों में बढ़ती मिली। यानी जिन मतदाताओं ने कांग्रेस को 68 विधानसभा सीटों में चुनाव जितवाया था, उन्हीं ने लोकसभा चुनाव के दौरान 66 विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के पक्ष में कम मतदान किया। इसके बाद दिसम्बर 2019 में नगरीय निकाय चुनाव हुए। इसमें मतदाताओं ने कांग्रेस को ज्यादा महत्व दिया। सभी नगर निगमों में कांग्रेस के महापौर बने। ज्यादातर नगर पालिकाओं व नगर पंचायतों में भी कांग्रेस के अध्यक्ष बनें।
रायपुर और दुर्ग लोकसभा में नहीं मिली थी बढ़त: रायपुर लोकसभा क्षेत्र में नौ विधानसभा सीटें आती है। विधानसभा चुनाव में इनमें से 6 सीटों पर कांग्रेस, 2 पर भाजपा और 1 सीट पर जकांछ उम्मीदवार जीता था। जबकि लोकसभा चुनाव के दौरान नौ विधानसभा सीटों में से किसी सीट पर भी कांग्रेस प्रत्याशी को बढ़त नहीं मिली थीं। ठीक इसी प्रकार की स्थिति दुर्ग लोकसभा की थी। यहां भी नौ विधानसभा सीट है। विधानसभा चुनाव में इनमें से सिर्फ 1 सीट पर भाजपा चुनाव जीत सकी थी।
लोकसभा चुनाव में सीटों पर मिली थी कांग्रेस को बढ़त: सीतापुर, पत्थलगांव, खरसिया, धरमजयगढ़, चंद्रपुर, बिलाईगढ़, जैजैपुर, रामपुर, कटघोरा, पाली-तानाखार, मरवाही, मस्तूरी, खुज्जी, मोहला-मानपुर, खल्लारी, कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, चित्रकोट, बीजापुर, कोंटा, सिहावा, डौंडीलोहारा व भानुप्रतापपुर शामिल हैं।
पार्षदों ने चुना महापौर कांग्रेस की सरकार बनाने के बाद महापौर चुनाव की प्रक्रिया में बदलाव किया गया है। आम मतदाता से महापौर चुनने का अधिकार वापस लेकर पार्षदों को दिया। इसके बाद अधिकांश स्थानों पर कांग्रेस के पार्षद चुनाव जीतकर आए। जहां कांग्रेस के पार्षद कम थे, वहां जोड़-तोड़ भी हुआ।
नियम बदलने के पीछे सरकार की मंशा थी कि महापौर चुनाव जीत जाते हैं, लेकिन बहुत से निकायों में दूसरे दल के पार्षदों का बहुमत होता है। इससे विकास कार्य प्रभावित होता है।