छत्तीसगढ़ में खुला 1800 साल पुरानी सभ्यता का रहस्य, यहां खुदाई में मिल रहे मौर्यकाल के अवशेष
स्थिति को जानने के लिए पत्रिका की टीम राजधानी से पाटन के गांव जमराव में पहुंची। जहां मजदूर विशेषज्ञों की टीम खुदाई कर रही थी। यह स्थान जहां खुदाई की जा रही है, खारून नदी के तट पर बसा है। जहां लगभग 5 से 6 फीट तक की खुदाई हो चुकी है। मौके से अभी तक मिट्टी के बर्तनों के अवशेष, धातुओं से निर्मित मालाओं के टुकड़े और सिक्कों जैसी कई सामग्रियां निकली हैं। विशेषज्ञ इसे प्रारंभ से द्वितीस ईशा के मध्य का बता रहे थे।
खारून नदी के तट पर इस तरह से बसाहट को देखते हुए इसे प्राचीन, व्यापारिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने की बात कही जा रही है। हालांकि अभी विभाग द्वारा अधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि परीक्षण के बाद कहने की बात कही गई है।
रींवा उत्खनन निदेशक पद्मश्री सम्मान प्राप्त डॉ अरूण कुमार शर्मा के निर्देशन में विभाग द्वारा इस स्थल का सर्वेक्षण किया गया है। यहां मौर्य काल में बसाहट आरंभ हो चुका था तथा सोमवंशी शासकों के काल में यहां विहार तथा मंदिरों का निर्माण कराया होगा। इस खुदाई में लोक पूजा के स्तूपों के मिलने की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं।
मौर्य राजवंश प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली एवं महान राजवंश क्षत्रिय वंश था। इसने 137 वर्ष में भारत में राज किया। इसकी स्थापना का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य को और उनके मंत्री कौटिल्य को दिया जाता है। जिन्होने नंद वंश के सम्राट को पराजित किया था। मौर्य सम्राज्य के विस्तार एवं उसके शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है।