scriptवनोपज एकत्रित करने दिख रहा अलग नजारा, टोकनी के खजाने में छिपी महुआ, चार, तेंदू और खट्टी-मीठी इमली | A different view is seen collecting forest produce, mahua hidden in th | Patrika News
रायपुर

वनोपज एकत्रित करने दिख रहा अलग नजारा, टोकनी के खजाने में छिपी महुआ, चार, तेंदू और खट्टी-मीठी इमली

वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान राजनांदगांव जिले में अब तक चरोटा बीज, हर्रा, महुआ फूल, बहेड़ा, इमली (बीज रहित), इमली बीज, कालमेघ, बेल गुदा, पलास फूल, भिलवा, करंज बीज के 358.29 क्विंटल लघुवनोपज की शासन के द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य पर खरीदी हो चुकी है। इसमें समितियों द्वारा 6 लाख 25 हजार 864 रूपए का भुगतान लघुवनोपज संग्राहकों को किया जा चुका है।

रायपुरApr 18, 2020 / 07:11 pm

Shiv Singh

वनोपज एकत्रित करने दिख रहा अलग नजारा, टोकनी के खजाने में छिपी महुआ, चार, तेंदू और खट्टी-मीठी इमली

वनोपज एकत्रित करने दिख रहा अलग नजारा, टोकनी के खजाने में छिपी महुआ, चार, तेंदू और खट्टी-मीठी इमली

रायपुर. भोर होते ही हाथ में टोकनी लिए अलग-अलग डगर से होते हुए दूर सघन पहाडियों की ओर लघुवनोपज संग्रहण के लिए निकल पड़ते हैं महिलाएं, युवा और बुजुर्ग। यह खुशनुमा मंजर है, राजनांदगांव जिले के नक्सल प्रभावित विकासखंड मानपुर के ग्राम हलोरा का, जहां सघन वनों के बीच महुए टपक रहे हैं और इससे जमीन पर सुनहरी परत बिछ गई है। मेहनतकश लोगों की टोकरी के खजाने में महुआ, चार, चरोटा, तेन्दू, आवला, हराज़्, बहेड़ा, शहद, धवईफूल, रंगीनी लाख, कुसुमी लाख, बेल गुदा, जामुन बीज, ईमली, आम से भरे हुए हैं। महकते फ ल-फूलों की छतरियों से वन गुलजार हैं। घने पहाड़ों पर धूप गिलहरी की तरह आंख मिचौली खेल रही है। कोरोना वायरस कोविड-19 की विभीषिका से बचाव के लिए जिले में लॉकडाउन है। ऐसे में सुरक्षा उपायों एवं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए वनांचल के ग्रामवासी लघुवनोपज संग्रहण के लिए पूरी तल्लीनता से जुटे हुए हैं।
राजनांदगांव जिले के मानपुर एवं मोहला विकासखंड अनुसूचित जनजाति क्षेत्र हैं। यहां के वनों में प्रचुर मात्रा में लघुवनोपज है। ग्राम हलोरा की सीमा मिस्त्री ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रोत्साहन एवं संबल से हम सभी लघुवनोपज संग्रह कर रहे हैं और समर्थन मूल्य पर लघु वनोपज की संग्रहण केन्द्रों में बिक्री होने से हमे अच्छी आमदनी मिल रही है। ग्राम हलोरा की ही समैतिन ने कहा कि हम सभी 5 बजे सुबह से उठकर महुआ बीनने जाते है और उसे सुखाकर बेचते हैं। शासन द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य पर वनोपजों की खरीदी होने से हमें बड़ा सहारा मिला है। वहीं मिचगांव के सकुन्ती और झारसाय सपरिवार महुआ बीन रहे हैं। ग्राम आमाकोड़ा की बुजुर्ग अम्मा भी लघु वनोपज संग्रह कर रही है। ग्राम तोलुम की बालिका मनीषा, ओमप्रकाश, डालिका भी महुआ और अन्य लघु वनोपज बिनने में लगे हुए हैं। उनके द्वारा बताया गया कि जंगल के पास घर है इसलिए महुआ बीनने में कोई डर नहीं लगता।

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