CG Hindi news : ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट में एमबीबीएस या इससे अधिक पढ़ाई करने वालों को ही ये दवाइयां लिखने का अधिकार है। मेडिकल स्टोर वालों को भी इनका रेकॉर्ड रखना पड़ता है। समय-समय पर जांच भी होती है। इतनी कवायद इसीलिए क्योंकि इन मेडिसिन के अधिक इस्तेमाल से शरीर में रेजिस्टेंस बढ़ता है। इस स्थिति में पहुंचने के बाद दवाइयां काम नहीं करतीं। मसलन कैंसर, टीबी, किडनी-लीवर या अन्य किसी गंभीर बीमारी में इलाज मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा भी कई साइड इफकेक्ट्स भी देखने को मिलते हैं।
Latest cg news : 80% मामले वायरल के, इसमें एंटीबायोटिक्स की जरूरत नहीं: मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. आरएल खरे ने बताया कि सर्दी-खांसी, बुखार के 80 फीसदी मामले वायरल के होते हैं। कभी लोग मनमर्जी से तो कभी किसी के कहने पर एंटीबायोटिक दवाएं खा लेते हैं। जबकि, वायरल में इसकी कोई जरूरत नहीं। इसके लिए एंटीवायरल दवाएं आती हैं। जब वाकई हमें इन दवाओं की जरूरत पड़ती है तो वे हमारे शरीर पर काम नहीं करतीं। नतीजतन इलाज मुश्किल हो जाता है। इस वजह से किसी की मृत्यु भी हो सकती है।
CG govt news : इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश सचिव राहुल वर्मा बोले- एलोपैथी सिस्टम ऑफ मेडिसिन विदेशों की देन है। भारत ने इसे अपना तो लिया, लेकिन नकल करने में अक्ल नहीं लगाई। विश्व में हम आज एंटीबायोटिक दवाओं के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। इन दवाओं के बेतहाशा इस्तेमाल से रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म होना शुरू हो गई है। अभी नहीं संभले तो भविष्य में भयंकर दुष्परिणाम सामने आएंगे।
कब, किसे और कितनी दवा देनी है? ये काफी सोच-समझकर तय होता है शेड्यूल एच-1 ड्रग कब, किसे और कितना देना है, डॉक्टर काफी सोच-समझकर तय करते हैं। उम्र, वजन के साथ ये भी देखा जाता हैं कि मरीज पहले ही किसी गंभीर से बीमारी से पीड़ित तो नहीं? कोई और दवाइयां तो नहीं खाता? कोई साइड इफेक्ट तो नहीं होगा? ये सब देखने के बाद तय होता है कि मरीज को शेड्यूल एच-1 दवा देनी है या नहीं? अगर देनी है तो कब तक और कितने पावर की? इतनी गंभीर बातों को नजरअंदाज करते हुए स्वास्थ्य विभाग जीवनरक्षक दवाइयां इस तरह बंटवा रहा है जो लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है।
सीधे जान को खतरा क्योंकि इससे बड़ी बीमारियां दबेंगी
कोई मरीज कहे कि मुझे फीवर है और मितानिन ने उसे एंटीबायोटिक दवाई खिला दी। उसे कुछ दिन ठीक लगा और उसने फिर से वही दवाई खाकर आराम पा लिया। क्या पता उस व्यक्ति को टीबी या ग्लूकोमा जैसी गंभीर बीमारी हो। एंटीबायोटिक लेने से ये कुछ समय के लिए दबे रहे और भयानक रूप में सामने आए। इसीलिए डॉक्टरी जांच जरूरी है। लोगों की जान पर खतरा पैदा करने वाले प्रयोग बंद हों।
डॉ. विकास अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष, आईएमए मितानिनों को प्राथमिक उपचार के लिए किट दी गईं हैं। दवाइयां भी नियमों के मुताबिक ही दी जा रही होंगी। – टी.एस. सिंहदेव, स्वास्थ्य मंत्री, छत्तीसगढ़