2005 में शुरू हुए थे स्कूल
2005 से श्रम मंत्रालय के जरिए इन स्कूलों का संचालन करवाया जा रहा था। इसके पीछे मंशा यही थी कि यहां उन बच्चों को पढऩे-लिखने का अवसर मिले। वहां हर साल ऐसे बच्चों का एडमिशन करवाया जाता था, जो काम कर अपनी जीविका चलाते हैं। सरकार इन्हें छात्रवृत्ति से लेकर ड्रेस, टाई, जूते और कॉपी, किताबें देती थी। ताकि पढ़ाई के खर्चे का भार उन पर न पड़े।
आंकड़ों पर एक नजर
कुल स्कूल – 326
कर्मचारी-अधिकारी – 1400
शैक्षणिक अनुदेशक – 2
लिपिक – 1
भृत्य – 1
बाल श्रमिक की मान्यता में भी गड़बड़ी
बाल श्रम की परिभाषा में माता-पिता के साथ या पारिवारिक काम करने वाले बच्चे बाल श्रमिक की श्रेणी में नहीं आते हैं। परंपरागत व्यवसाय करने वाले बच्चे भी बाल श्रमिक के दायरे में नहीं आते। इतना ही नहीं, अब तो 14 साल या उससे अधिक उम्र के बीड़ी मजदूरों को भी बाल श्रमिक के दायरे से बाहर कर दिया गया है। जिनमें कचरा बीनने वाले, ट्रेन, बस, रेलवे स्टेशन सहित अन्य स्थानों पर खेल- करतब दिखाने वाले या फेरी लगाकर सामग्री बेचने वाले सहित कई अन्य तरह के काम करने वाले बच्चे बाल श्रमिक की श्रेणी में नहीं आते।
स्टेशन से पकड़े गए 18 बच्चे
बीते सप्ताह बाल संरक्षण समिति और रेलवे पुलिस (जीआरपी) की संयुक्त टीम ने रेलवे स्टेशन से 18 घुमंतू बच्चों को पकड़ा। इनमें से दो नशे के आदी थे। 8 नाच-गाकर तमाशा दिखाने वाले, तीन भीख मांगने वाले और 3 कचरा बीनने वाले शामिल थे।