जब वापस ही लेना था तब क्यों दिए कफन के पैसे!
ड्यूटी के दौरान ब्रेन हेमरेज व उससे हुई मौत के बाद जीआरपी के जवान को विभाग की ओर से 20 हजार रुपए की सहायता राशि दी गई।
रायगढ़. ड्यूटी के दौरान ब्रेन हेमरेज व उससे हुई मौत के बाद जीआरपी के जवान को विभाग की ओर से 20 हजार रुपए की सहायता राशि दी गई। पर जब उसके परिजनों को पिछले माह की ड्यूटी का भुगतान किया गया तो उसमेंं से 20 हजार रुपए काट लिया गया। जो उसके कफन व अंतिम संस्कार के लिए दिया गया था। अब मृत जवान के परिजन विभाग के आला अधिकारियों से पूछ रहे हैं कि जब काटना ही था तो क्यों दी सहायता राशि।
वहीं विभागीय अधिकारी इसे एक विभाग की प्रक्रिया बताकर मामले को टालने की कोशिश कर रहे हैं। सड़क हादसे के दौरान अगर किसी व्यक्ति की मौत होती है तो उसे प्रशासन की ओर से तत्काल 25 हजार रुपए की आर्थिक मदद दी जाती है। जिससे उसकी अंतिम संस्कार की समाजिक प्रक्रिया पूरी हो सके। कुछ ऐसी ही सुविधा जीआरपी के जवानों को भी मिली है। लेकिन उनकी मौत के बाद दी गई विभागीय सहायता राशि को उसके बकाए सैलरी से काट ली जाती है। जिसका शिकार हाल ही में एक जवान के परिवार को होना पड़ा।
रायगढ़ जीआरपी मेंं पदस्थ आरक्षक क्रमांक 247 मंशाराम सहारे 1 मार्च को ड्यूटी के दौरान बीमार पड़ गया। उसकी दिमाग की नस फट गई और इलाज के दौरान 2 मार्च को रायपुर के अस्पताल में उसकी मौत हो गई। रायपुर लाइन के फंड से मृत जवान के परिजनों को 20 हजार रुपए की सहायता राशि दी गई। जिससे जवान का अंतिम संस्कार हो सके। पर फरवरी माह की सैलरी मृत जवान के परिजनों को दिया गया। उसमें 20 हजार रुपए काट लिए गए। वहीं एकाउंट सेक्शन से यह कहा गया कि पूर्व में कफन-दफन को दी गई सहायता राशि काटने का विभागीय प्रक्रिया है। विभाग के इस हिसाब से स्थानीय जीआरपी के जवान भी हैरान है। पर विभागीय नियमों के आगे वो भी चुप्पी साधने को मजबूर हंै।
ये उनका हक था
पीडि़त परिजनों ने बताया कि मंशाराम की मौत ड्यूटी के दौरान हुई थी। ऐसे में, विभाग द्वारा दी गई सहायता राशि कोई भीख नहीं बल्कि मंशाराम का हक था। पर विभाग की इस करतूत से हम सभी परिजनों के दिल को काफी ठेस पहुंची है। जिसकी शिकायत विभाग के आला अधिकारी से की जाएगी।
सहयोगियों ने की मदद
आरक्षक मंशाराम को ब्रेन हेमरेज होने के बाद उसे पहले जिला अस्पताल फिर मेट्रो अस्पताल में भर्ती किया गया। जहां से उसे रायपुर रेफर कर दिया गया। मंशाराम के साथ स्थानीय जीआरपी के जवान भी साथ में गए थे। इलाज के दौरान उसे स्थानीय अधिकारी व जवानों ने भी आर्थिक रूप से मदद की थी।
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