नवरात्र के नौ दिनों तक चलने वाले शक्ति की अराधना के इस पर्व में माता के अलग-अलग स्वरुपों की पूजा की जाती है। अंचल के प्रसिद्ध देवी मंदिर चंद्रपुर स्थित चंद्रहासिनी माता, नाथल दाई मंदिर सहित तराईमाल स्थित बंजारी माता मंदिर में बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। वहीं इन मंदिरों में इस समय पूरे दिन भक्तों का आना-जाना लगा हुआ है। साथ ही चंद्रपुर स्थित चंद्रासिनी माता मंदिर में प्रदेश सहित पड़ोसी राज्य ओडिशा से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे रहे हैं। सोमवार को माता का दूसरा रूप ब्रम्हचारिणी देवी की अराधना की गई।
पंडित राजकुमार चौबे ने बताया कि नवरात्र के नौ दिन बहुत विशेष होता है। इस कारण अलग-अलग दिन अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। इन नौ रूपों का एक अलग ही महत्व हैं। उन्होंने बताया कि वेदों के अनुसार ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली है। ऐसे में मां ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को ब्रह्मचारिणी नाम से जानी जाती है। इनकी विधि-विधान से अराधना करने से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
शहर में भी बढ़ी रौनक नवरात्र शुरू होने के बाद शहर में भी रौनक बढ़ गई है। वहीं शहर के चौक-चौराहों में माता को स्थापित करने के लिए पंडाल तैयार किया जा रहा है। समिति के सदस्यों का कहना है कि पंडाल तैयार करने के लिए कुछ दिन ही शेष बचे हैं। इससे अब दिन-रात काम चल रहा है। वहीं अलग-अलग शहरों के की तर्ज पर पंडाल बनाए जा रहे हैं।
आज होगी मां चंद्रघंटा की पूजा नवरात्र के तीसरे मंगलवार को मां चंद्रघंटा की आराधना की जाएगी। मान्यता है मां का यह रूप बेहद ही सुंदर, मोहक और अलौकिक है। चंद्र के समान सुंदर मां के इस रूप से दिव्य सुगंधियों और दिव्य ध्वनियों का आभास होता है। मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटें का आकार का अर्धचंद्र है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि इनके शरीर का रंग सोने के समान चमकीला है। इनके दस हाथ व सभी हाथों में खड्ग, शस्त्र व बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं, इनका वाहन सिंह है।