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उस्ताद जाकिर हुसैन: तबले की थाप से कहानियां बुनने वाले जादूगर

पं. विश्व मोहन भट्ट, विश्व प्रसिद्ध संगीतज्ञ, (पदम भूषण और ग्रैमी अवॉर्ड से सम्मानित )

जयपुरDec 17, 2024 / 03:53 pm

Hemant Pandey

अमरीका में रहते हुए उन्होंने वहां के स्थानीय संगीतज्ञों के साथ फ्यूजन तैयार किए, जिससे भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर नई पहचान मिली।

जाकिर साहब श्रोताओं की नब्ज पहचानते थे। वे कहते थे कि ‘समय के साथ न बहो। संगीत में रम जाओगे तो श्रोता भी खुद ही संगीत का आनंद लेने लगेंगे।’

उनकी बहुमुखी प्रतिभा उन्हें ग्रैमी अवॉर्ड तक ले गई। वे पहले भारतीय तबला वादक ही नहीं बल्कि पहले संगीतज्ञ थे, जिन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार ४ बार मिला। अमरीका में रहते हुए उन्होंने वहां के स्थानीय संगीतज्ञों के साथ फ्यूजन तैयार किए, जिससे भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर नई पहचान मिली। जाकिर साहब श्रोताओं की नब्ज पहचानते थे। वे कहते थे कि ‘समय के साथ न बहो। संगीत में रम जाओगे तो श्रोता भी खुद ही संगीत का आनंद लेने लगेंगे।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उस्ताद जाकिर हुसैन एक ऐसा नाम हैं, जिन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। तबले के इस जादूगर ने न केवल भारतीय संगीत को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया, बल्कि इसे पारंपरिक और आधुनिक शैलियों का अनोखा संगम भी बनाया। उनका संबंध पंजाब घराने से था और तबला उनके खून में शामिल था। उनके पिता, उस्ताद अल्लारखा खां, जो स्वयं तबले के महान उस्ताद थे, ने उन्हें जो तालीम दी, उसे जाकिर हुसैन ने न केवल आगे बढ़ाया बल्कि इसे आम लोगों के बीच लोकप्रिय और सुलभ बना दिया। उन्होंने अपनी वादन शैली को अधिक मनोरंजक और संवादात्मक बनाया, जिससे तबले को हर वर्ग के श्रोता समझ और आनंदित कर सकें।

उस्ताद जाकिर हुसैन ने तबले को एक ऐसा वाद्य बना दिया, जो सिर्फ संगीत का साधन नहीं, बल्कि एक कहानी कहने का माध्यम बन गया। वे घोड़े की टाप, ट्रेन की आवाज, भगवान शंकर के डमरू, शंख और घंटी जैसी अनकों ध्वनियों को तबले से निकालने में सिद्धहस्त थे। ये प्रयोग न केवल उनके कौशल को दर्शाते थे, बल्कि उनकी रचनात्मकता और संगीत के प्रति जुनून को भी दिखाते थे। उनकी प्रस्तुतियां श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थीं और उनके साथ गहरा जुड़ाव स्थापित करती थीं। उनकी सोलो प्रस्तुतियां जितनी अद्भुत होती थीं, उतनी ही जब वे संगत करते थे, तो मुख्य कलाकार को हमेशा प्राथमिकता देते थे। यही वजह है कि संगीत जगत में हर कलाकार उनका नाम सम्मान के साथ लेता है। एक बार चेन्नई में जब मैं मंच पर प्रस्तुति दे रहा था, तब जाकिर साहब ने तबले पर संगत की। उनकी सादगी और विनम्रता ऐसी थी कि मुझे कभी महसूस नहीं हुआ कि मेरे साथ दुनिया का महानतम तबला वादक मंच साझा कर रहा है। वे छोटे कलाकारों को भी उतना ही सम्मान देते थे, जितना बड़े कलाकारों को। वे हमेशा संगीत धर्म का पालन करते थे और पुराने उस्तादों की बंदिशों को सुनाने से पहले उनका नाम जरूर लेते थे।
जाकिर हुसैन ने चार पीढिय़ों के साथ काम किया। 12 साल की उम्र में बड़े गुलाम अली खान, उस्ताद अमीर खान और ओंकारनाथ ठाकुर जैसे दिग्गजों के साथ संगत शुरू की। 16-17 साल की उम्र में पंडित रविशंकर और अली अकबर खां जैसे उस्तादों के साथ काम किया। बाद में, हरि प्रसाद चौरसिया, शिव कुमार शर्मा और अमजद अली खान के साथ संगत की और फिर नए जमाने के शाहिद परवेज, राहुल शर्मा, और अमान-अयान जैसे नए कलाकारों के साथ काम किया। उन्होंने पुरानी और नई पीढिय़ों के बीच सेतु का काम किया, दोनों को जोडऩे का प्रयास किया।
उनकी यही बहुमुखी प्रतिभा उन्हें ग्रैमी अवॉर्ड तक ले गई। वे पहले भारतीय तबला वादक थे, जिन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार ४ बार मिला। अंतिम ग्रैमी अवॉर्ड जनवरी 2024 में मिला था। अमरीका में रहते हुए उन्होंने वहां के संगीतज्ञों के साथ फ्यूजन तैयार किए, जिससे भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर नई पहचान मिली। जाकिर साहब श्रोताओं की नब्ज पहचानते थे। वे कहते थे कि ‘समय के साथ न बहो। संगीत में रम जाओ तो श्रोता खुद ही संगीत का आनंद लेने लगेंगे।’ उनकी मंच पर मौजूदगी ऐसी होती थी कि श्रोता उनसे आंखें हटाने में असमर्थ रहते थे।
वे सादगी और सहजता के प्रतीक थे। एक बार जयपुर में, जब मैं उनसे होटल में मिला, तो उन्होंने स्कूटर से मेरे घर जाने की इच्छा जताई। वे मेरे स्कूटर पर पीछे बैठकर घर आए, घंटों हमारे साथ समय बिताया और फिर स्कूटर से ही होटल लौटे जबकि मैंने उनसे कहा कि थोड़ी देर में कार की व्यवस्था हो जाएगी, लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया।
अहमदाबाद में पिछले 45 वर्षों से संगीत फेस्टिवल ‘सप्तक’ चलता है। एक से 13 जनवरी के बीच आयोजन होता है। जाकिर साहब हर बार इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए अमरीका से आते थे। यहां न केवल अपनी प्रस्तुति देते थे बल्कि श्रोतों से मिलकर उनसे बातें करते थे, उनके साथ फोटो भी खिचवाते थे। सबसे खास बात वे नए कलाकारों के लिए भी अलग से समय निकालते थे। वह चाहते थे तो कम समय का हवाला देकर इन सबसे बच जाते, लेकिन उन्होंने कभी भी ऐसा नहीं किया। शादी के बाद वे अमरीका में रहने लगे थे, लेकिन वे नियमित रूप से अपने मुंबई के पुश्तैनी घर पर आते रहे थे।
उन्होंने ग्रैमी अवॉर्ड के साथ पद्मश्री, पदम भूषण और पदम विभूषण अवॉर्ड मिले थे। ये सब उनके कद को ऊंचा करते हैं लेकिन असल में वे इससे भी बड़े अवॉर्ड के हकदार थे। उनकी सोच भी प्रेरणादायक थी। एक बार जब मैंने उनके घुंघराले बालों पर सवाल किया, तो उन्होंने कहा, ‘कलाकार को हमेशा हीरो की तरह दिखना चाहिए। मंच पर हमारी उपस्थिति उतनी ही महत्त्वपूर्ण है, जितनी हमारी प्रस्तुति।’ उनके जैसे कलाकार सदियों में एक बार आते हैं। भारतीय संगीत को उनके योगदान के लिए हमेशा गर्व रहेगा।

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