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विकसित भारत के विजन को वास्तविकता में बदलने पर फोकस करना होगा

प्रो.गौरव वल्लभ, वरिष्ठ शिक्षाविद और आर्थिक मामलों के जानकर

जयपुरJan 16, 2025 / 02:44 pm

Hemant Pandey

देश की लगभग 68 फीसद आबादी कामकाजी उम्र वाली है। भारत की औसत आयु (आधी आबादी अधिक उम्र और आधी आबादी इस उम्र से कम) 29.5 वर्ष है, जो चीन की 39.8 वर्ष और ब्रिटेन की 40.6 वर्ष से बिल्कुल विपरीत है। यह डेटा गतिशील, नवोन्मेषी और युवा कार्यबल की जबर्दस्त क्षमता को रेखांकित करता है। यह जनसांख्यिकीय लाभांश एक ऐसा अवसर लिए है, जिसका अगर प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए तो यह देश को अभूतपूर्व आर्थिक विकास की ओर ले जा सकता है।

किसी भी देश के लिए मानव संसाधन काफी महत्वपूर्ण होता है और देश की अर्थव्यवस्था में इसकी अहम भूमिका होती है। इसी संदर्भ में, भारत के 144 करोड़ लोगों की आकांक्षाएं देश की प्रगति को प्रेरित करती हैं। पिछले एक दशक से ज्यादा के वक्त में, भारत सरकार ने रोजगार सृजन को अपने गवर्नेंस का केंद्रबिन्दु बनाया है और इसके परिवर्तनकारी परिणाम भी सामने आए हैं। हालांकि, किसी भी सार्थक प्रयासों के साथ जश्न मनाने के लिए बहुत कुछ है लेकिन आने वाले वर्षों में चुनौतियां भी हैं जिस पर ध्यान देने की जरूरत है। भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश और वैश्विक स्तर पर सबसे युवा कार्यबल में से एक के रूप में भारत की एक विशिष्ट विशेषता है जो उसके प्रतिस्पर्धियों पर बढ़त देता है। देश की लगभग 68 फीसद आबादी कामकाजी उम्र वाली है। भारत की औसत आयु (आधी आबादी अधिक उम्र और आधी आबादी इस उम्र से कम) 29.5 वर्ष है, जो चीन की 39.8 वर्ष और ब्रिटेन की 40.6 वर्ष से बिल्कुल विपरीत है। यह डेटा गतिशील, नवोन्मेषी और युवा कार्यबल की जबर्दस्त क्षमता को रेखांकित करता है। यह जनसांख्यिकीय लाभांश एक ऐसा अवसर लिए है, जिसका अगर प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए तो यह देश को अभूतपूर्व आर्थिक विकास की ओर ले जा सकता है।
रोजगार सृजन पिछले एक दशक से सरकार के फोकस का मुख्य बिन्दु रहा है जो आर्थिक विकास और सामाजिक स्थिरता के लिए सरकार की सुव्यक्त मान्यता, स्वीकृति को दर्शाता है। आंकड़े इस प्रगति के गवाह हैं: 2014 और 2024 के बीच, भारत में 17.19 करोड़ नई नौकरियों का सृजन हुआ जबकि पिछले दशक (2004-14) में सिर्फ 2.9 करोड़ रोजगार का सृजन हुआ था। केवल एक साल 2023-24 के दौरान ही 4.6 करोड़ नौकरियां जोड़ी गईं। यह वृद्धि सरकार की नीतियों और महत्वाकांक्षा को प्रदर्शित करती है। संख्या की दृष्टि से यह पहल परिवर्तनकारी रही है। बेरोजगारी कम करने तथा कार्यबल में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने में मददगार साबित हुई है। बेरोजगारी दर, जो 2017-18 में 6 फीसद थी, वह 2023-24 में 3.2 फीसद रह गई जबकि इसी अवधि के दौरान श्रम बल भागीदारी दर 49.8 फीसद से बढ़कर 60.1 फीसद हो गई। विशेषकर, अलग-अलग क्षेत्रों में रोजगार सृजन में हुई प्रगति महत्वपूर्ण रही है। 2014 से 2023 के बीच कृषि रोजगार में 19 फीसद की वृद्धि हुई, जबकि यूपीए के कार्यकाल में 2004 से 2014 के बीच इसमें 16 प्रतिशत की गिरावट आई थी। विनिर्माण क्षेत्र में 2014 से 2023 के बीच रोजगार में 15 फीसद की वृद्धि हुई, जो पिछले दशक की तुलना में दोगुना से भी ज्यादा है। ये परिणाम लक्षित नीतियों की असरकारिता के संकेतक हैं।
पर, यह एक ही सिक्के के दोनों पहलू नहीं है। उदाहरण के लिए, विनिर्माण ऐसा क्षेत्र है जहां रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं हैं। लेकिन जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी लगभग 15 फीसद पर बनी हुई है- जो राष्ट्रीय विनिर्माण नीति द्वारा तय 25 फीसद के लक्ष्य से काफी दूर है। इसके विपरीत चीन और दक्षिण कोरिया की जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी क्रमशः 28 और 25 फीसद है। यद्यपि प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) योजना के तहत 1.97 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय ने इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में बड़े पैमाने पर निवेश सुनिश्चित किया है, वित्तवर्ष 2022-23 में मोबाइल फोन का निर्यात 15.6 बिलियन डॉलर तक पहुंचा है, पर रोजगार का सृजन उम्मीद से कम रहा। ऐसे में जरूरत है कि पीएलआइ योजना को नए रूप में ढालने की जो सीधे रोजगार सृजन से जुड़ी हो।
राजकोषीय तनाव भी एक अन्य अवरोधक कारक है। भारत में टैक्स-टू-जीडीपी अनुपात 11.7 फीसद है, जो रोजगार उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में इसके निवेश को सीमित करता है। हालांकि, जीएसटी संग्रह लगातार हर माह 1.5 लाख करोड़ से अधिक का रहा है, कर आधार को व्यापक बनाने और समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं के 20 फीसद (टैक्स-टू-जीडीपी) अनुपात तक पहुंचने के लिए ढांचागत सुधारों की जरूरत है। टैक्स अनुपालन में सुधार, संपत्ति करों के आधुनिकीकरण और जीएसटी विश्लेषण में एआइ का उपयोग करने से राजकोषीय गुंजाइश बनाई जा सकती है।
एमएसएमइ सेक्टर इस दशक में समावेशी विकास हासिल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवसर पेश करता है। 63.4 मिलियन इंटरप्राइजेज देश की जीडीपी में 30 फीसद का योगदान करते हैं और 100 मिलियन से ज्यादा लोगों को रोजगार के अवसर सुलभ कराते हैं। एमएसएमइ सेक्टर का इकोनॉमिक फुटप्रिंट थाईलैंड या स्वीडन जैसे देशों की पूरी अर्थव्यवस्था की तुलना में बहुत बड़ा है। एमएसएमइ सेक्टर 20-25 लाख करोड़ रुपये के ऋण अंतराल का सामना कर रहा है। इस क्षेत्र के लिए वित्तपोषण तक पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र में रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं हैं। साथ ही, हमें उच्च कौशल, उच्च वेतन वाले रोजगार अवसरों पर भी अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जहां साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, और मैथमेटिक्स (एसटीइएम) क्षेत्रों में स्नातक करने वाले छात्रों की संख्या ज्यादा है। बेहतर नौकरी, निरंतर कौशल विकास और स्टार्ट-अप विकास का समर्थन करने में तकनीकी कॉलेजों, नियोक्ताओं और निवेशकों के बीच घनिष्ठ संबंध मददगार साबित हो सकते हैं-जो जॉब सीकर्स को जॉब क्रिएटर्स बना सकते हैं।
सरकार को अब भारतीय कार्यबल को भविष्य के लिए अनुकूल बनाने की जरूरत है। पीएलआइ योजना का पुनर्मूल्यांकन करने, हरित ऊर्जा में निवेश बढ़ाने और उभरते क्षेत्रों जैसे एआइ, ऑटोमेशन, इलेक्ट्रिक मोबेलिटी में नवाचार इसमें मददगार हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारत का 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा प्राप्त करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। यह पर्यावरण के लिए अच्छा है और यह सबसे बड़े रोजगार उत्पादकों में से एक बन जाएगा। इसी तरह, इंडियन स्पेस इकोनॉमी जो आज 8.4 बिलियन डॉलर की है, इसके 2033 तक 44 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। इससे इस क्षेत्र में हजारों विशिष्ट भूमिकाओं वाले लोगों की जरूरत होगी।

आने वाले समय में, भारत को बेहतर शिक्षा में निवेश करने और औपचारिक कार्यबल में प्रवेश के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित करना आवश्यक है। इससे आय की वृद्धि में मदद मिलेगी और परिणाम स्वरूप रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलेगा। इसे हासिल करने के लिए साझेदारी जरूरी होगी। सार्वजनिक-निजी सहयोग, सामुदायिक जुड़ाव और सिटीजन फीडबैक (शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देने में मदद के लिए) संगठनों को उनकी रणनीतियों को परिष्कृत करने में मदद कर सकता है। वैश्विक व्यवधान-कोविड महामारी, भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक मंदी- ने भारत के लचीलेपन की परीक्षा ली है। हमें, पिछले दस वर्षों पर विचार करते हुए, यह महसूस करना चाहिए कि समृद्ध भारत की यह यात्रा अभी शुरू ही हुई है। सरकार ने नींव रख दी है और सही दिशा दी है। निरंतर प्रयास, रणनीतिक सुधार और सामूहिक इच्छाशक्ति यह सुनिश्चित कर सकती है कि भारत जनसांख्यिकीय लाभांश को जनसांख्यिकीय वरदान में बदल सकता है, प्रत्येक नागरिक के लिए अवसर है- 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को पूरा करने का।

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