एमएसएमइ सेक्टर इस दशक में समावेशी विकास हासिल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवसर पेश करता है। 63.4 मिलियन इंटरप्राइजेज देश की जीडीपी में 30 फीसद का योगदान करते हैं और 100 मिलियन से ज्यादा लोगों को रोजगार के अवसर सुलभ कराते हैं। एमएसएमइ सेक्टर का इकोनॉमिक फुटप्रिंट थाईलैंड या स्वीडन जैसे देशों की पूरी अर्थव्यवस्था की तुलना में बहुत बड़ा है। एमएसएमइ सेक्टर 20-25 लाख करोड़ रुपये के ऋण अंतराल का सामना कर रहा है। इस क्षेत्र के लिए वित्तपोषण तक पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र में रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं हैं। साथ ही, हमें उच्च कौशल, उच्च वेतन वाले रोजगार अवसरों पर भी अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जहां साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, और मैथमेटिक्स (एसटीइएम) क्षेत्रों में स्नातक करने वाले छात्रों की संख्या ज्यादा है। बेहतर नौकरी, निरंतर कौशल विकास और स्टार्ट-अप विकास का समर्थन करने में तकनीकी कॉलेजों, नियोक्ताओं और निवेशकों के बीच घनिष्ठ संबंध मददगार साबित हो सकते हैं-जो जॉब सीकर्स को जॉब क्रिएटर्स बना सकते हैं।
सरकार को अब भारतीय कार्यबल को भविष्य के लिए अनुकूल बनाने की जरूरत है। पीएलआइ योजना का पुनर्मूल्यांकन करने, हरित ऊर्जा में निवेश बढ़ाने और उभरते क्षेत्रों जैसे एआइ, ऑटोमेशन, इलेक्ट्रिक मोबेलिटी में नवाचार इसमें मददगार हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारत का 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा प्राप्त करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। यह पर्यावरण के लिए अच्छा है और यह सबसे बड़े रोजगार उत्पादकों में से एक बन जाएगा। इसी तरह, इंडियन स्पेस इकोनॉमी जो आज 8.4 बिलियन डॉलर की है, इसके 2033 तक 44 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। इससे इस क्षेत्र में हजारों विशिष्ट भूमिकाओं वाले लोगों की जरूरत होगी।
आने वाले समय में, भारत को बेहतर शिक्षा में निवेश करने और औपचारिक कार्यबल में प्रवेश के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित करना आवश्यक है। इससे आय की वृद्धि में मदद मिलेगी और परिणाम स्वरूप रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलेगा। इसे हासिल करने के लिए साझेदारी जरूरी होगी। सार्वजनिक-निजी सहयोग, सामुदायिक जुड़ाव और सिटीजन फीडबैक (शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देने में मदद के लिए) संगठनों को उनकी रणनीतियों को परिष्कृत करने में मदद कर सकता है। वैश्विक व्यवधान-कोविड महामारी, भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक मंदी- ने भारत के लचीलेपन की परीक्षा ली है। हमें, पिछले दस वर्षों पर विचार करते हुए, यह महसूस करना चाहिए कि समृद्ध भारत की यह यात्रा अभी शुरू ही हुई है। सरकार ने नींव रख दी है और सही दिशा दी है। निरंतर प्रयास, रणनीतिक सुधार और सामूहिक इच्छाशक्ति यह सुनिश्चित कर सकती है कि भारत जनसांख्यिकीय लाभांश को जनसांख्यिकीय वरदान में बदल सकता है, प्रत्येक नागरिक के लिए अवसर है- 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को पूरा करने का।