उनके प्रधानमंत्री काल में ऐसे बहुत से कार्य निरंतर हुए, जिनसे आम जन निरंतर लाभान्वित हुआ। ऐसे निर्णय लिए गए जो दीर्घकालीन लाभ के रहे।लोकसभा में नौ बार और राज्यसभा में वह दो बार चुने गए। देश के इतिहास में यह अपने आप में कीर्तिमान है। देश के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, संसद की विभिन्न महत्त्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने आजादी के बाद भारत की घरेलू और विदेश नीति को आकार देने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। विश्व के प्रति उदारवादी सोच और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को पक्ष-विपक्ष ने समान रूप से सराहा है। वह देश के पहले ऐसे राजनीतिज्ञ रहे हैं जिनका पक्ष और विपक्ष दोनों ही समान रूप से सम्मान करता रहा है। इसका बड़ा कारण यही था कि राष्ट्र के हित के लिए और आमजन के कल्याण के लिए उनकी दृष्टि जुड़ी थी।यह उनके सुशासन की दृष्टि ही थी कि गांव और शहरों के एक साथ बिना भेदभाव के विकास से जोडऩे का भी उन्होंने अपने प्रधानमंत्रीकाल में मंत्र दिया। प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना उन्होंने प्रारंभ की। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना से देश को जोड़ा।
भारतमाला, सागरमाला, अर्ध-न्यायिक केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग की स्थापना आदि और भी बहुत सारी परियोजनाओं के माध्यम से उन्होंने सुशासन के साथ भारत को विकास पथ पर अग्रसर किया। देश के विदेश मंत्री जब वह रहे तो विदेशों में भी भारत की लोकप्रिय छवि निर्मित की। वह आजीवन पक्ष-विपक्ष से ऊपर उठकर समभाव और सामंजस्य से काम करते हुए राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता से जुड़ें रहे, इसीलिए जनप्रिय नेता के रूप में ही हमेशा जाने-पहचाने गए।प्रजातंत्र के चार जो प्रमुख स्तंभ कहे जाते हैं, उनमें विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया के समन्वय से लोकतंत्र में सभी को भाग लेने का अवसर देने और जनता के हित में शासन की प्रभाविता को उन्होंने हमेशा प्राथमिकता दी।
सुशासन के लिए वही यह बात कह सकते थे कि सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी, परन्तु ये देश रहना चाहिए, इसका लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।वाजपेयी जी इस बात के पक्षधर थे कि कार्यपालिका विधायिका के उन निर्णयों की तुरंत पालना करने के लिए कटिबद्ध होकर कार्य करें, जिनमें जनता का समान रूप में कल्याण हो। उन्होंने संसद में इसी के लिए सदा आवाज उठाई। प्रधानमंत्री रहते हुए अपने रखे मुद्दों को वह भूले नहीं और सुशासन की नींव रखी। वह वास्तव में जनता के बीच अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए ही नहीं शुचिता के लिए जाने जाते थे।
सुशासन का उनका मंत्र था, गणतंत्र में लोग ही प्रमुख होते हैं। वही मिलकर विधायिका का गठन करते हैं। वोट देने वाले लोगों की यह अपेक्षा रहती है कि जिन लोगों का चुनाव कर उन्होंने विधायिका के लिए भेजा है वह उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरे। इसलिए शासन में प्रत्येक स्तर पर जवाबदेही बहुत जरूरी है।जनता से जुड़े मुद्दों की उन्हें गहरी समझ थी। संसदीय परम्पराओं की पालना के साथ सुशासन उनकी प्राथमिकता थी। कुशल सार्वजनिक सेवाओं, स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली और सुव्यवस्थित समानता आधारित कानूनी ढांचे और जवाबदेह प्रशासन से जुड़े कार्यों को प्राथमिकता देते हुए उन्होंने कार्य किया। यह भी उनकी ही देन है, जिसमें शासन जनता की जरूरतों और प्राथमिकताओं को पूरा करने वाले तंत्र के रूप में आकार लेने की ओर अग्रसर हुआ।