चीन की आक्रामकता वैश्विक और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए लगातार चुनौती बनी हुई है। दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में उसकी सैन्य कार्रवाइयां, ताइवान पर आक्रमणकारी नीति, और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसकी रणनीतियां चिंता का विषय हैं। इसके अतिरिक्त, भारत-चीन सीमा पर गतिरोध और सैन्य दबाव दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा रहे हैं। ब्रिक्स (भारत, ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका का संयुक्त संगठन) और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ, जिसमें भारत, चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और पाकिस्तान शामिल हैं) जैसे बहुपक्षीय संगठनों का विस्तार और ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और अमेरिका का एक सुरक्षा गठबंधन) तथा क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, अमेरिका और जापान) जैसे नए गठबंधन वैश्विक शक्ति संतुलन को नया स्वरूप दे रहे हैं।
चीन और अमेरिका के बीच व्यापार और तकनीकी प्रतिस्पर्धा भी एक नई वैश्विक चुनौती के रूप में उभर रही है। एआई, सेमीकंडक्टर्स और 5जी प्रौद्योगिकियों में प्रतिस्पर्धा वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर रही है। इससे विकासशील और विकसित देशों के बीच आर्थिक असंतुलन बढ़ने का खतरा है।
भारत के पड़ोस में उभरते घटनाक्रम भी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और प्रॉक्सी युद्ध से सुरक्षा चिंताएं बनी हुई हैं। हालांकि, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाने और शांतिपूर्ण चुनाव कराने के बाद हालात में सुधार हुआ है। इसके बावजूद पाकिस्तान-अफगानिस्तान में बढ़ता तनाव कश्मीर में अस्थिरता लाने की कोशिश कर सकता है, जिससे अतिरिक्त सतर्कता की आवश्यकता है।
म्यांमार में अस्थिरता, बांग्लादेश में हिंदू-विरोधी बयानबाजी और मंदिरों में तोड़फोड़, और पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर बढ़ती अस्थिरता भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में जातीय और धार्मिक तनाव को बढ़ा सकती हैं। मणिपुर में जातीय संघर्ष, नागा शांति वार्ता की धीमी प्रगति और मिजो समुदाय से जुड़े मुद्दे उत्तर-पूर्व क्षेत्र में शांति और विकास में बाधा बन रहे हैं। असम और पश्चिम बंगाल में सामाजिक-धार्मिक विभाजन से उत्पन्न तनाव राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती है। इन समस्याओं का समाधान स्थानीय समुदायों के सहयोग और संवेदनशील नीति निर्माण के माध्यम से किया जा सकता है।
बाहरी सुरक्षा के लिहाज से, भारत-चीन सीमा विवाद, समुद्री क्षेत्र में चीनी आक्रामकता, और पाकिस्तान व बांग्लादेश की बयानबाजी से जुड़े मुद्दे प्रमुख हैं। खासतौर पर चटगांव क्षेत्र में बढ़ती हिंदू-विरोधी बयानबाजी भारत के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर सकती है।
गृह मंत्री अमित शाह ने 2026 तक देश को नक्सलवाद से मुक्त करने का वादा किया है। हालांकि, छिटपुट घटनाएं अभी भी सामाजिक स्थिरता में बाधा डाल सकती हैं। राजनीतिक ध्रुवीकरण जैसे समान नागरिक संहिता और किसान आंदोलनों से जुड़े विवाद संभावित नागरिक अशांति का कारण बन सकते हैं।
इन बदलते सुरक्षा परिदृश्यों में, भारत को मजबूत कूटनीति, सुदृढ़ सैन्य नीति और समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। आंतरिक शांति और बाहरी खतरों से निपटने के लिए सशक्त रणनीतियां ही भारत को इन चुनौतियों से उबरने में मदद कर सकती हैं। इस तरह की नीतियां न केवल भारत की सुरक्षा को सुनिश्चित करेंगी, बल्कि वैश्विक स्थिरता में भी योगदान देंगी।