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प्रयागराज

आनंद भवन में बापू का वह कमरा जहां आज भी सुरक्षित है,पूजा के बर्तन, कपड़े और उनकी यादें

1919 से 1942 तक बापू इस शहर में आते रहे ,लोगो मिलता रहा बापू का प्यार

प्रयागराजOct 01, 2019 / 04:21 pm

प्रसून पांडे

memory of Mahatma Gandhi is preserved even today in Anand Bhawan

आनंद भवन में बापू का वह कमरा जहां आज भी सुरक्षित है,पूजा के बर्तन, कपड़े और उनकी यादें

प्रयागराज। महात्मा गांधी को जब भी याद किया जाएगा तब इलाहाबाद के पन्ने जरूर पलटे जाएंगे। देश भर में महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती समारोह को मनाने की भव्य तैयारियां चल रही है। महात्मा गांधी जिनकी एक आवाज पर लाखों लाख लोग उनके साथ चल देते थे। वे महात्मा गांधी इलाहाबाद में दर्जनों बार पंहुचे। यहाँ कई बड़ी पब्लिक मीटिंग को संबोधित किया। इस दौरान ज्यादातर बापू स्वाराजभवन और फिर आनंद भवन में रुकते रहे जहाँ आज भी उनकी यादें दर्ज है। पत्रिका ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और आनंद भवन के केयरटेकर रहे मुंशी कन्हैया लाल के दामाद श्याम कृष्ण पांडे से बात की श्याम कृष्ण पांडे बापू को याद करते हुए कहते हैं कि बापू आखरी बार 1942 में आनंद भवन आए थे।आनंद भवन के निदेशक डॉ खालिद अंसारी बापू की यादें साझा करते हुए कहते ही की वह हर दिन बापू को पढ़ते है देखते है और समझने की कोशिश करते है।

1919 से 1942 तक आते रहे बापू

1919 से बापू की जो यात्रा इलाहाबाद की शुरू हुई वह 1942 तक अनवरत जारी रही। डॉ अंसारी बताते हैं कि दस्तावेजों के अनुसार महात्मा गांधी इलाहाबाद दर्जनों बार आए। लेकिन जब भी रुके स्वराज और आनंद भवन में ही रहे। सत्याग्रह की बैठक से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक के मौसेदे पर यही बैठक हुई।भारत छोड़ो आंदोलन का मसौदा तैयार हुआ जिसकी पहली महत्वपूर्ण बैठक आनंद भवन में हुई थी। जिसके बाद जुलाई में वर्धा में हुई बैठक में इस पर मुहर लगी थी। 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक मुंबई ग्वालियर में हुई गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव को कांग्रेस कार्यसमिति में कुछ संशोधनों के बाद स्वीकार किया गया। 9 अगस्त से देशव्यापी आंदोलन शुरू हुआ था। भारत छोड़ो आंदोलन का मसौदा बनने के बाद उसकी बैठक आनंद भवन में हुई जिसके बाद देश की आजादी की महत्वपूर्ण और अंतिम लड़ाई लड़ी गई।जिसके बाद 1947 में देश तानी हुकूमत से आजाद हुआ।

कब -कब आये बापू

11 मार्च 1919 को बापू ने स्वराज भवन में सत्याग्रह को लेकर एक बैठक में आये। 29 नवम्बर 1920 फिर 1 दिसंबर 1920 को आनंद भवन में रुके। 9 मई 1921 को महात्मा गांधी विजयलक्ष्मी पंडित की शादी में शामिल हुए।10 मई को उन्होंने इलाहाबाद में बड़ी पब्लिक मीटिंग को संबोधित किया। 10 अगस्त 1921 में महात्मा गांधी आनंद भवन पहुंचे यहां उन्होंने लोगों से मुलाकात की। 10 जनवरी 1927 को महात्मा गांधी इलाहाबाद फिर आना हुआ । 26 जुलाई 1929 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में उन्होंने या हिस्सा लिया। 19 नवंबर 1929 को एक कॉलेज के उद्घाटन में यहां आए। 28 जनवरी 1931 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में फिर शामिल हुए ।उसके बाद 6 फरवरी 1931 को पंडित मोतीलाल नेहरू के निधन के बाद आनंद भवन पहुंचे। 1942 में इंदिरा गांधी की शादी के दौरान आनंद भवन में मौजूद रहे। इसके बाद 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के मसौदे पर बैठक की जिसमें सरदार बल्लभ भाई पटेल पंडित जवाहरलाल नेहरू अब्दुल गफ्फार खान जैसी हस्तियां मौजूद रही।

बापू को देखने पंहुची थी हजारो की भीड़

श्याम कृष्ण पाण्डेय कहते है की बापू का शहर से रिश्ता बहुत गहरा था।जून 1942 में जब आखिरी बार बापू आनंद भवन आए उनसे मिलने और उनको देखने के लिए हजारों की भीड़ आनंद भवन पहुंच गई। जैसे .जैसे लोगों को पता चल रहा था कि बापू आनंद भवन में है लोग खिंचे चले आ रहे थे। उस वक्त जब न फोन था न व्हाट्सएप था न दुनिया इतनी डिजिटल थी। तब सिर्फ बापू के आने की खबर ही लोगों के लिए बड़े संदेश की तरह थी। हजारों की भीड़ से बापू का मिल पाना संभव नहीं था। बापू ने आनंद भवन की छत से लोगों को संबोधित किया। वह स्थान आज भी आनंद भवन में संरक्षित किया गया है।

बापू की यादे है आनंद भवन में
आनंद भवन में लोगों को आज भी बापू की उस कमरे का दर्शन होता है। जहां बापू ठहरा करते थे। जिसमें आज भी उनका पलंग उनके पूजा के बर्तन उनके कुछ कपड़े, कुर्सी मेज एक छोटा चरखा और तीन बंदरों वाला छोटा सा स्टेचू सुरक्षित रखा गया है। आज भी लोग इसे देखकर बापू के आत्मविश्वास और उनके चिंतन को समझने की कोशिश करते हैं। बापू का वह कमरा उनके हिसाब से पंडित मोतीलाल नेहरू ने बनवाया था। आनंद भवन की दूसरी मंजिल पर यह कमरा आज भी तमाम यादों को समेटे और इतिहास के पन्नों को पलटते हुए सुरक्षित है।
आनंद भवन में रखी गई थी बापू की अस्थियाँ
30 जनवरी 1948 को बापू की हत्या के बाद उनके अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थियां देशभर में प्रभावित करने के लिए भेजी गई उनका अस्थि कलश इलाहाबाद लाया गया उसे संगम में विसर्जित किया गया आनंद भवन के अहाते में बापू की अस्थियां रखी गई उस वक्त उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए गांव गांव से लोग आए और बाबू को अपना श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

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