ये भी पढ़ें- अखिलेश और ओवैसी को लेकर भाजपा सांसद ने कहा- दोनों एक ही मानसिकता के, एक के पिता ने… अदालत ने यह फैसला उस याचिका पर सुनाया, जिसमें कहा गया था कि दूसरे धर्म के लड़के से शादी की इच्छा रखने वाली एक बालिग लड़की को हिरासत में रखा गया है। इस जोड़े ने अदालत से कहा था कि शादी से 30 दिन पहले नोटिस देने से उनकी निजता का उल्लंघन हो रहा है। इस नोटिस पर जस्टिस विवेक चौधरी ने कहा कि इस तरह की चीजों (शादी की सूचना) को सार्वजनिक करना निजता और आजादी जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इसके साथ ही यह अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने के आड़े भी आता है।
ये भी पढ़ें- अयोध्याः आध्यात्मिक मेगा स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 38 ग्लोबल कंपनियां दौड़ में, पांच फरवरी को होगा चयन अदालत ने यह भी कहा किसी के दखल के बिना पसंद का जीवन साथी चुनना एक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि शादी कर रहे लोग नहीं चाहते तो उनका ब्यौरा सार्वजनिक न किया जाए। ऐसे लोगों के लिए सूचना प्रकाशित कर उस पर लोगों की आपत्तियां न ली जाएं। हालांकि कोर्ट ने विवाह अधिकारी के सामने यह विकल्प रखा कि वह दोनों पक्षों की पहचान, उम्र व अन्य जानकारियों का सत्यापन कर ले।
दरअसल अब तक अंतरधार्मिक विवाह में जोड़े को जिला मैरिज ऑफिसर को शादी के लिए पहले से लिखित सूचना देनी होती है। शादी से 30 दिन पहले ये सूचना दी जाती है। जिसके बाद अधिकारी अपने कार्यालय में ये नोटिस लगाता है, जिस पर 30 दिनों के भीतर शादी को लेकर कोई आपत्ति करना चाहता है तो कर सकता है।