आदिवासी बाहुल्य इलाके में आज भी खेलें जाते हैं परम्परागत खेल
मेरियाखेड़ी में जहां एक तरफ शहरों में परम्परागत खेल गुम होते जा रहे हैं। वहीं गांवों में आज भी ये खेल देखे जा सकते हैं। विशेषकर
आदिवासी बाहुल्य इलाके में आज भी परम्परागत खेल खेले जाते है। जो गांवों में देखे जा सकते हैं।
क्षमता और आत्मविश्वास बढ़ाते थे खेल
पहले बच्चों की टोली गिल्ली-डंडा, सितोलिया, दड़ीमार, कबड्डी जैसे खेल खेले जाते थे। इन खेलों से बच्चों का व्यायाम तो होता ही था। साथ ही निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास आदि में वृद्धि होती थी। लुकाछिपी में बच्चे खेल-खेल में गिनती सीख जाते थे। इस खेल में सौ तक की गिनती की जाती है। ये तमाम खेल ऐसे थे जो घर से बाहर खेले जाते थे। बच्चे एक जगह जमा होते थे। इससे विचारों का आदान-प्रदान होता था, टीम भावना जगती थी। अब बच्चे वीडियो और मोबाइल में उलझे रहते हैं। जिससे एकांकी जीवन की अवधारणा विकसित हो रही है।