दरअसल, एक साल पहले एक जनवरी, 2018 को पुणे के पास स्थित भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़की थी। इससे एक दिन पहले वहां यलगार परिषद नाम से एक रैली हुई थी। पुलिस मानती है कि इसी रैली में हिंसा भड़काने की भूमिका बनाई गई। भीमा कोरेगांव पेशवाओं के नेतृत्व वाले मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए युद्ध के लिए जाना जाता है। एक जनवरी 2018 को इस युद्ध की पिछले साल 200वीं सालगिरह थी। कल इसकी 201वीं सालगिरह है। 201 वर्ष पूर्व मराठा सेना यह युद्ध हार गई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी को महार रेजीमेंट के सैनिकों की बहादुरी की वजह से जीत हासिल हुई थी। बाद में भीमराव आंबेडकर यहां हर साल आते रहे। यह जगह पेशवाओं पर महारों यानी दलितों की जीत के एक स्मारक के तौर पर स्थापित हो गई, जहां हर साल उत्सव मनाया जाने लगा।
विगत वर्ष 31 दिसंबर, 2017 को इस युद्ध की 200वीं सालगिरह थी। भीमा कोरेगांव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान के बैनर तले कई संगठनों ने मिलकर एक रैली आयोजित की थी जिसका नाम यलगार परिषद रखा गया। वाड़ा के मैदान में हुई इस रैली में लोकतंत्र, संविधान और देश बचाने की बात कही गई थी। इस रैली में दिवंगत छात्र रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला ने रैली का उद्घाटन किया था। उनके अलावा इसमें प्रकाश आंबेडकर, हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल, गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी, जेएनयू छात्र उमर खालिद, आदिवासी एक्टिविस्ट सोनी सोरी आदि शामिल हुए थे। सबकुछ ठीक चलता रहा लेकिन अगले दिन भीमा कोरेगांव में उत्सव मनाया जा रहा था उसी दौरान संसावाड़ी में हिंसा भड़क उठी। कुछ देर तक पत्थरबाजी हुई। कई वाहनों को नुकसान हुआ और एक नौजवान की जान चली गई। हिंसा को लेकर दक्षिणपंथी संस्था समस्त हिंद अघाड़ी के नेता मिलिंग एकबोटे और शिव प्रतिष्ठान के संस्थापक संभाजी भिड़े के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी।
एक जनवरी, 2019 को पुणे में भीमा-कोरेगांव हिंसा का एक साल पूरा होने वाला है। यही कारण है कि मुंबई, पुणे, नागपुर पुलिस सहित महाराष्ट्र पुलिस सतर्क है। बताया जा रहा है कि हिंसा न हो इस बात को सुनिश्चित करने के लिए भीम आर्मी को रैली की इजाजत नहीं दी जा रही है। पुलिस को आशंका है कि कहीं पिछले वर्ष की तरह इस बार भी रैली व अन्य तरह के भीड़ का लाभ उठाकर लोग हिंसक घटनाओं को अंजाम न दे दें। यही कारण है कि रैली की जिद पर अड़े भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण को मुंबई पुलिस ने होटेल के अंदर ही नजरबंद कर दिया। उनके कार्यक्रमों को मंजूरी नहीं दी। आजाद ने जहां इसे अपने संवैधानिक अधिकार का हनन बताया है तो पुलिस ने नजरबंद करने की बात का खंडन किया है। पुणे में भी रैली की इजाजत न मिलने पर मुंबई हाईकोर्ट ने पुलिस से रिपोर्ट तलब की है।