वहीं इस बार यदि प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया ग्वालियर से चुनाव मैदान में उतरीं तो यह सिंधिया राजपरिवार Scindia Royal Family में यह दूसरा अवसर होगा जब एक ही पार्टी से एक साथ दो सदस्य अलग-अलग क्षेत्रों से चुनाव लडेंगे।
1962 में ग्वालियर सीट से राजमाता विजयाराजे royal family of india कांग्रेस से जीतीं। यहीं से माधवराव सिंधिया 4 बार कांग्रेस व एक बार विकास कांग्रेस से चुनाव जीते। दो बार उनकी छोटी बहन यशोधरा राजे सिंधिया भाजपा के टिकट से जीतीं।
ये है मामला
दरअसल लोकसभा चुनावों की तारीखें काफी पास आने के बावजूदर मध्यप्रदेश में दोनों ही भाजपा और कांग्रेस में अजब स्थिति बनी हुई है। जिसके चलते दोनों ही पार्टियां अपने सभी प्रत्याशियों की घोषणा अब तक नहीं कर पाईं हैं।
एक ओर जहां भाजपा के लिए अपने किलों को बचाने की कोशिशें जारी हैं। वहीं कांग्रेस इस बार राज्य में सरकार बनने के चलते लोकसभा में भी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश में जुटी दिख रही है।
इसी के चलते कांग्रेस अपने मजबूत दावेदारों को चुनाव में लाने की रणनीति पर कार्य कर रही है। ऐसे में ग्वालियर व गुना सीटें जो मुख्य रूप से सिंधिया राजपरिवार का गढ़ मानी जातीं है। कांग्रेस लगातार इन पर अपनी नजरें बनाई हुई है।
असल में अब तक सिंधिया राजपरिवार का कोई एक सदस्य ही कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ता था, जिसके चलते दोनों क्षेत्रों में से एक पर कांग्रेस का कब्जा हो जाता था, जबकि दूसरे में कई बार भाजपा फतह हासिल कर लेती थी।
इन्हीं सब बातों को देखते हुए कहा जा रहा है कि इस बार कांग्रेस इन दोनों सीटों से सिंधिया राजपरिवार के सदस्य उतारने जा रही है।
प्रियदर्शिनी राजे ग्वालियर से चुनाव मैदान में !
सामने आ रही जानकारी के अनुसार यदि इस बार प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया ग्वालियर से चुनाव मैदान में उतरीं तो यह सिंधिया राजपरिवार में यह दूसरा अवसर होगा जब एक ही पार्टी से एक साथ दो सदस्य अलग-अलग क्षेत्रों से चुनाव लडेंगे। क्योंकि ऐसी स्थिति में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना सीट से चुनाव लड़ सकते हैं।
एक ही राजपरिवार के दो सदस्य…
वर्ष 1971 में भी राजमाता वियजाराजे सिंधिया भिंड और उनके पुत्र माधवराव सिंधिया गुना संसदीय सीट से जनसंघ के टिकट से मैदान में उतरे थे और एक साथ चुनाव जीते।
वहीं इस बार कुछ दिन पहले ही ग्वालियर में एक नाटकीय घटनाक्रम के बीच जिला कांग्रेस और सिंधिया समर्थकों ने गुना सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की धर्मपत्नी प्रियदर्शिनी राजे को ग्वालियर से चुनाव लड़ाए जाने का प्रस्ताव पारित कर दिया। जिसके बाद सियासतदार हैरान रह गए।
दरअसल राजनीतिक अखाड़े में सिंधिया परिवार के सदस्य हमेशा ही पूरी संजीदगी के साथ कदम रखते हैं। कभी किसी भी चुनाव में हड़बड़ी में ऐसा कदम नहीं उठाया, जिससे परिवार की साख दांव पर लगे। माना जाता है कि सिंधिया परिवार ने राजनीति के लिए कुछ स्व-निर्धारित नियम बना रखे हैं।
कभी भी नहीं लड़े आपस में :
इन नियमों में सबसे खास बात यह भी है कि दो परस्पर विरोधी दल भाजपा व कांग्रेस में बंटा राजपरिवार कभी भी एक-दूसरे के सामने नहीं आया।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया की मध्यप्रदेश में राजनीतिक विरासत संभालने वाली यशोधरा राजे सिंधिया और दिवंगत माधवराव सिंधिया की राजनीतिक विरासत संभालने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी भी एक- दूसरे के सामने चुनावी मैदान में नहीं उतरे।
ऐसी ही स्थिति में 2007 के उपचुनाव और 2009 के मुख्य चुनाव में जब यशोधरा राजे सिंधिया ग्वालियर से भाजपा की प्रत्याशी बनीं तो उनके सामने महल का कोई और सदस्य सामने नहीं आया।
इसके अलावा इन नियमों के तहत वैसे तो कभी भी दो सदस्य एक ही पार्टी से अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों से मैदान में नहीं उतरे हैं। लेकिन अपवाद स्वरूप 1971 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया भिंड और उनके पुत्र माधवराव सिंधिया गुना संसदीय क्षेत्र से एक ही दल भारतीय जनसंघ से चुनाव मैदान में उतरे और जीते।
नियम बनाने का ये है कारण!
सिंधिया परिवार अपने तिलिस्म को कायम रखने के लिए ग्वालियर में कोई बड़ा जोखिम नहीं उठाते। यहीं कारण है कि एक साथ एक ही पार्टी से चुनावी मैदान में नहीं उतरते।
दरअसल माना जाता है कि दो जगह से जीत के फेर में चूक की गुंजाइश बनी रहती है। ऐसी ही स्थिति में यदि चूक हो गई तो फिर आगे के लिए सिंधिया परिवार के सदस्यों के कभी न हारने का तिलिस्म भी टूट जाएगा।