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संविधान बचाओ अभियानः आंकड़ों से समझिए, दलितों पर क्यों राहुल का दांव?

राज्य दर राज्य अपना आधार खो रही कांग्रेस की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए राहुल गांधी ‘सबका साथ’ की नीति पर फोकस कर रहे हैं।

Apr 23, 2018 / 09:03 am

प्रीतीश गुप्ता

Rahul Gandhi Samvidhan
नई दिल्ली। आरक्षण की समीक्षा और अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम में सुधार पर हुए हालिया बवाल के बीच आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम से ‘संविधान बचाओ अभियान’ का आगाज करने जा रहे हैं। इस रैली का मूल मकसद दलितों मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करना है। ऐसे में अहम सवाल यह है कि आखिर राहुल गांधी दलितों पर दांव क्यों लगा रहे हैं? दरअसल, राज्य दर राज्य अपना आधार खो रही कांग्रेस की गाड़ी को फिर से पटरी पर लाने के लिए अब सबका साथ की नीति पर फोकस किया जा रहा है। इस खेल को कुछ आंकड़ों के जरिए समझिए।
17 फीसदी आबादी दलित है देश में
2011 की जनगणना के हिसाब से देश में 17 फीसदी यानी करीब 20.14 करोड़ लोग दलित हैं। अलग-अलग राज्यों में करीब 1200 से ज्यादा जातियां अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित हैं। देश की 543 लोकसभा सीटों में से 80 अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। कुल मिलाकर एक बड़ा वोट बैंक इस वर्ग से बनता है, जिस पर सिर्फ राहुल ही नहीं सभी पार्टियों की नजर है। लेकिन मौजूदा दौर में भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर लगभग सभी दल बुरे दिनों का सामना कर रहे हैं। मोदी लहर में कई क्षेत्रीय क्षत्रप ढेर हो चुके हैं ऐसे में राहुल सभी राज्यों में दलित समुदाय पर पकड़ बनाने के लिए मशक्कत कर रहे हैं।
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चुनावी राज्यों पर खास फोकस
वैसे तो राहुल गांधी मिशन 2019 की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन मौजूदा साल में कई महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। इनमें कर्नाटक, मध्य प्रदेश , राजस्थान, छत्तीसगढ़ भी शामिल हैं। मध्य प्रदेश में 6 फीसदी (15 फीसदी आदिवासी), जबकि राजस्थान में 6.1 फीसदी आबादी दलित समुदाय से जुड़ी है। ऐसे में कांग्रेस बचाने के लिए राहुल दलितों को संजीवनी के रूप में देख रहे हैं। बहरहाल, दलित वोट बैंक पर कई विपक्षी दलों की नजर है, ऐसे में गठबंधन को मोदी से निपटने का मुख्य हथियार मान रही कांग्रेस के लिए उनके वोटबैंक में सेंध लगाना रणनीतिक मोर्चे पर आसान नहीं होगा।

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