कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक बड़ा फैसला लेते हुए नवजोत सिद्धू को अध्यक्ष बना दिया। साथ ही चार कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त किए हैं। सबसे बड़ी बात कि सोमवार को होने वाली प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक से ठीक कुछ घंटे पहले यह बड़ा फैसला लिया गया है। ऐसे में पंजाब कांग्रेस के अंदर मामला सुलझता हुआ नहीं, बल्कि उलझता हुई दिखाई पड़ रहा है।
Punjab: नवजोत सिंह सिद्धू बने पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष, सोनिया गांधी ने दी मंजूरी
इतना ही नहीं, नवजोत सिद्धू के लिए इस नई जिम्मेदारी को संभालना आसान नहीं होगा। क्योंकि कैप्टन अमरिंदर अभी भी मुख्यमंत्री बने रहेंगे। बीते कुछ दिनों से चल रहे सियासी घटनाक्रम और अब सोनिया गांधी के इस फैसले के बाद से कई ऐसे सवाल उभरकर सामने आए हैं, जिसका जवाब शायद आने वाले दिनों में मिलेंगे। फिलहाल, पंजाब कांग्रेस के अंदर इस बदलाव का असर राजस्थान और बाकी कांग्रेस शासित प्रदेशों में दिखाई पड़ सकता है।
क्या कैप्टन को दी गई सजा?
नवजोत सिद्धू को रोकने के लिए सीएम अमरिंदर ने कई रणनीतियां बनाई, लेकिन अंततः वे उन्हें रोक नहीं पाए और सिद्धू पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं। ऐसे में जो सवाल उठता है कि क्या सिद्धू के ‘सिक्सर’ के आगे कैप्टन अमरिंदर ने हथियार डाल दिए? या फिर कैप्टन अमरिंदर को हाईकमान की बात न मानने की सजा दी गई? यह सवाल कई मायनों में महत्वपूर्ण है।
चूंकि बीते शुक्रवार को कैप्टन अमरिंदर ने सोनिया गांधी को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने स्पष्ट शब्दों में नाराजगी जाहिर की थी और ये साफ-साफ चेतावनी भरे अंदाज में कह दिया था कि यदि हाईकमान पंजाब की राजनीति में जबरन दखल देने की कोशिश करता है तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इससे कुछ दिन पहले अमरिंदर दिल्ली पहुंचे थे और सोनिया गांधी से मुलाकात भी की थी।
पंजाबः अमरिंदर से मिलकर बोले हरीश रावत, आलाकमान का निर्देश मानेंगे कैप्टन, सिद्धू भी जुटा रहे समर्थन
वहीं, पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने एक बयान में ये कहा था कि पार्टी हाईकमान जो भी फैसला करेंगे कैप्टन अमरिंदर उसे स्वीकार करेंगे। लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये बताया गया कि अमरिंदर को हरीश रावत का ये बयान पसंद नहीं आया। वे किसी भी कीमत में सिद्धू को पंजाब की जिम्मेदारी सौंपने के पक्ष में नहीं हैं। क्योंकि कैप्टन अमरिंदर चाहते हैं कि पंजाब की कमान किसी पुराने कांग्रेसी के हाथों में रहे न कि कुछ साल पहले भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुए सिद्धू के पास। ऐसे में विवाद सुलझने के बजाए टकराव बढ़ने की संभावना और अधिक बढ़ गई।
क्या प्रताप बाजवा ने कैप्टन को दिया धोखा?
आपको बता दें कि जहां एक ओर पंजाब प्रदेश अध्यक्ष का पद हासिल करने के लिए सिद्धू ने जी-जान लगा दी और लगातार एक के बाद एक पार्टी के बड़े नेताओं से मिलने लगे। शनिवार को उन्होंने कई बड़े नेताओं, विधायकों और पार्टी के सांसदों से मुलाकात की। ऐसे में कैप्टन की मुश्किलें बढ़ती दिखने लगी। लिहाजा, शनिवार को कैप्टन ने एक नई रणनीति बनाते हुए सिद्धू को रोकने के लिए अपने धूर विरोधी प्रताप सिंह बाजवा से हाथ मिलाया। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये कहा गया कि सिद्धू को रोकने के लिए ही कैप्टन ने ये रूख अख्तिया किया है। इसके बाद से सिद्धू और कैप्टन की लड़ाई सबके सामने खुलकर आ गई।
हालांकि, रविवार को बाजवा के घर पर प्रदेश के सांसदों की अहम बैठक हुई। बैठक में बाजवा ने कहा कि हमने किसानों के मुद्दे पर चर्चा की। सिद्धू को लेकर पार्टी नेतृत्व फैसला लेगी। हाईकमान जो भी फैसला करेगी हमें मंजूर होगा। ऐसे में अब ये कहा जा रहा है कि प्रताप बाजवा ने सीएम अमरिंदर को धोखा दिया हैं, क्योंकि वे धुर विरोधी रहे हैं।
सिद्धू की राह आसान नहीं
आपको बता दें कि सिद्धू के लिए अध्यक्ष पद भले ही मिल गया है और कैप्टन के खिलाफ जंग जीतते हुए नजर आ रहे हैं, लेकिन उनके लिए ये राह आसान नहीं है। अगले साल फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में सिद्धू के पास अब ये जिम्मेदारी होगी कि वह पार्टी को जीत दिलाए, वह भी इतने कम समय के भीतर।
सिद्धू के सामने कैप्टन के सीएम रहते हुए पार्टी के लिए कुछ बड़े फैसले लेना सबसे बड़ी चुनौती होगी। अभी, हाल कि दिनों में सिद्धू और कैप्टन के बीच जो दूरियां बढ़ी है ऐसे में दोनों के साथ मिलकर काम करने पर संशय है। सिद्धू ने कैप्टन और सरकार के कामकाज को लेकर तीखे हमले बोले हैं।
इसके अलावा कैप्टन के साथ जारी विवाद पर कई विधायकों ने सिद्धू का विरोध भी किया है। रविवार को ही करीब 10 विधायकों ने सोनिया गांधी को एक पत्र लिख कर कैप्टन के प्रति अपना समर्थन जताया था और ये मांग की थी कि सिद्धू सार्वजनिक तौर पर माफी मांगे। पार्टी के वरिष्ठ नेता सुखपाल सिंह खैरा ने दावा किया था कि पार्टी के 10 विधायकों ने हाईकमान को पत्र लिखा है और कैप्टन अमरिंदर के प्रति अपना समर्थन जताया है। संयुक्त बयान जारी कर पत्र में विधायकों ने कहा था कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य पीसीसी प्रमुख की नियुक्ति पार्टी हाईकमान का विशेषाधिकार है, पिछले दो महीनों में पार्टी की साख गिरी है।