ऐसा पहली बार नहीं होगा कि नीतीश कुमार नैतिकत के नाते मुख्यमंत्री पद को छोड़ेंगे। इससे पहले भी वे नैतिकता के आधार पर सीएम की कुर्सी को छोड़ चुके हैं।
तीन साल पहले नीतीश कुमार ने उस वक्त सीएम पद से इस्तीफा दे दिया, जब उपमुख्यमंत्री पद पर काबिज आरजेडी नेता तेजस्वी यादव का नाम भ्रष्टाचार में सामने आया। इस वक्त जेडीयू ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। नीतीश ने नैतिकता की दुहाई दी और पद से इस्तीफा दे डाला।
वर्ष 2014 में भी नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में मिली पार्टी की करारी शिकस्त के बाद नैतिकता के आधार पर सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। इस चुनाव में जेडीयू को महज 2 सीटें मिली थीं। ऐसे में नीतीश ने अपनी कुर्सी जीतन राम मांझी को सौंप दी थी।
वर्ष 2005 में बिहार में एनडीए का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। वहीं एलजेपी ने 29 का समर्थन देने से भी इनकार कर दिया था। इस बीच खबरें आई कि 21 विधायक जेडीयू में शामिल होने के तैयार हैं, लेकिन नीतीश कुमार ने बुरे प्रदर्शन का जिम्मा लेते हुए नैतिकता के नाते इस्तीफा दे डाला।
माना जा रहा है कि बिहार चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत के बाद कार्यकर्ता चाहते हैं कि मुख्यमंत्री बीजेपी का ही उम्मीदवार बने। ऐसे में अपने पहले वादे को तोड़ने के लिए बीजेपी को कोई बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।