चुनाव प्रचार अभियान के दौरान हुए एक हादसे में ममता बनर्जी के पैर में चोट भी लग गई थी, जिसके बाद पैर में प्लास्टर बांधना पड़ा और वह अस्पताल में भर्ती रहीं, मगर जल्द ही उन्होंने प्रचार अभियान की कमान फिर संभाल ली थी। व्हीलचेयर पर बैठकर पूरे बंगाल का उन्होंने दौरा किया। उनके बारे में यह प्रचारित है कि वह काफी जुझारू महिला हैं और बेहद सादगी से जीवन व्यतीत करती हैं। पैर में चोट लगने के बाद भी प्रचार अभियान में डटे रहना, उनकी इस खासियत से रूबरू कराता है कि मुश्किल वक्त में भी वह घबराती नहीं हैं बल्कि, उसका डटकर सामना करती हैं।
ममता बनर्जी ने दक्षिण कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज से इतिहास में ऑनर्स की डिग्री हासिल की है। इसके बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इस्लामिक इतिहास में मास्टर डिग्री ली है। श्रीशिक्षायतन कॉलेज से उन्होंने बीएड की डिग्री ली और फिर कोलकाता के जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज से उन्होंने कानून की पढ़ाई की। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही वह छात्र राजनीति में आ गई थीं और तब से वह राजनीति में बनी हुई हैं। पहले वह कांग्रेस में रहीं और बाद में तृणमूल कांग्रेस का गठन किया।
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सफेद साड़ी और हवाई चप्पल उनकी पहचानजिसने भी ममता बनर्जी को जब कभी देखा है, बस नीले बॉर्डर की सफेद साड़ी और पैरों में हवाई चप्पल पहने ही देखा। उन्हें करीब से जानने वाले बताते हैं कि उनके पास कपड़ों की संख्या काफी कम है, सिर्फ जरूरत के हिसाब से। वह जरूरत की किसी भी चीज को आवश्यकता अनुसार ही रखती हैं, उससे ज्यादा संख्या में जमा नहीं करतीं। यही खासियत उनकी शख्सियत को और लोकप्रिय बनाती है। बहुत कम लोग जानते हैं कि सिर्फ एक रंग वह भी नीले बॉर्डर वाली जो सफेद साड़ी ममता बनर्जी पहनती हैं, वह पश्चिम बंगाल के धानेखाली क्षेत्र में बनती है। बंगाल का मौसम उमसभरा और काफी चिपचिपाहट वाला होता है। ऐसे मौसम में इस कपड़े की साड़ी काफी आरामदेह होती है।
गौरतलब है कि ममता बनर्जी ने राजनीति में इस मुकाम पर पहुंचने से पहले काफी संघर्ष किया है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी ऐसी नहीं थी कि उनका यह राजनीतिक सफर आसान बनाता। जी हां, परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उनका बचपन आर्थिक तंगी में गुजरा। 9 वर्ष की उम्र में ही उनके पिता का निधन हो गया था। इसके बाद परिवार में आर्थिक संकट और गहरा हो गया था। हरीश चटर्जी स्ट्रीट पर साधारण सा उनका पैतृक घर है। वर्ष 2011 में पहली बार सत्ता में आने के बाद जब वह मुख्यमंत्री बनीं, तब भी मुख्यमंत्री आवास में रहने नहीं गईं बल्कि, दो साल तक यहीं रहीं। मगर सुरक्षा कारणों से उन्हें यह घर छोडक़र मुख्यमंत्री आवास में रहने के लिए जाना पड़ा। हालांकि, मुहल्ले के लोगों से उनका काफी लगाव है और अक्सर वह यहां मिलने-जुलने के लिए आती रहती हैं।
पहनावे की तरह ममता बनर्जी का खानपान भी काफी सादा है। बंगाल के लोग तेल-मसाले की तली-भुनी हुई चीजें खाने को मशहूर हैं, मगर ममता बनर्जी इससे अलग बिना तला-भुना और तेल-मसाले के बिना सिर्फ सादा भोजन करना पंसद करती हैं। यही नहीं, उनके घर आने वाले मेहमानों के लिए भी जो व्यंजन परोसे दिए जाते हैं, वह ज्यादा शाही और तडक़-भडक़ वाले नहीं होते।
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अपनी बातों पर दृढ़ता से कायमममता बनर्जी के बारे में एक बात जो सबसे अधिक प्रचारित है कि वह मजबूत इरादों वाली बेहद महत्वाकांक्षी महिला हैं। यह बात उनकी जीवनचर्या में बखूबी दिखाई पड़ती है। यह मजबूत इरादों और महत्वाकांक्षी होने का स्पष्ट उदाहरण है कि उन्होंने कांग्रेस छोडक़र एक पार्टी खड़ी और उसे इस मुकाम पर ले आईं। यह उनके मजबूत इरादों को ही प्रदर्शित करता है कि वह बंगाल में तीन दशक तक सत्ता में जमी रही वामदलों की सरकार को उखाड़ फेंकने में सफल रहीं। केंद्र सरकार से भी तमाम मुद्दों पर उनकी तनातनी बनी रहती हैं और वह अपनी बात तथा अपनी मांग पर दृढ़ता से अड़ी और खड़ी रहती हैं।