बता दें कि महबूबा मुफ्ती ने सोमवार को मीरवाइज उमर को फोन कर कुछ नकाबपोश युवकों द्वारा जामा मस्जिद में अभद्रता के प्रयास की निंदा की थी। हुर्रियत के एक प्रवक्ता ने कहा, “महबूबा मुफ्ती का फोन कॉल जिसमें वह जामा मस्जिद की घटना की निंदा कर रही हैं और जिसे बहुत साफ वजहों से वह मीडिया में फैला रही हैं, स्पष्ट रूप से विडंबनापूर्ण है क्योंकि बतौर मुख्यमंत्री उनके कार्यकाल के दौरान लोगों को कई बार इस मस्जिद में नमाज पढ़ने से रोका गया था।”
प्रवक्ता ने कहा कि 2016 और 2017 में तीन महीनों के लिए मस्जिद पर ताला लगा दिया गया था, यहां तक की पहली बार रमजान के दौरान अलविदा जुमा की नमाज की इजाजत नहीं दी गई थी। 2018 में मस्जिद में 16 जुमे (शुक्रवार) ऐसे रहे जब नमाज नहीं पढ़ने दी गई।
प्रवक्ता ने कहा, “उस दौरान 2016 की ही तरह मीरवाइज को नजरबंद या जेल में रखा गया था। अगर महबूबा मुफ्ती की बतौर मुख्यमंत्री भी जामा मस्जिद के प्रति यही भावना थी तो उन्हें जामा मस्जिद पर प्रतिबंध लगाने या नमाज अता करने से रोकने के बजाए घाटी के मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों के लिए खड़े होने का साहस दिखाना चाहिए था। तब उनका गुस्सा कम से कम जायज माना जाता।”