दादाजी धूनीवाले की गिनती भारत के महान संतों में की जाती है। दादाजी धूनीवाले का अपने भक्तों के बीच वही स्थान है जैसा कि शिरडी के साँईबाबा का। दादाजी (स्वामी केशवानंदजी महाराज) एक बहुत बड़े संत थे और लगातार घूमते रहते थे। प्रतिदिन दादाजी पवित्र अग्नि (धूनी) के समक्ष ध्यानमग्न होकर बैठे रहते थे, इसलिए लोग उन्हें दादाजी धूनीवाले के नाम से स्मरण करने लगे। दादाजी धूनीवाले को
शिव तथा दत्तात्रेय भगवान का अवतार मानकर पूजा जाता है और कहा जाता है कि उनके दरबार में आने से बिन माँगी दुआएँ भी पूरी हो जाती हैं। दादाजी का जीवन वृत्तांत प्रामाणिक रूप से उपलब्ध नहीं है, परंतु उनकी महिमा का गुणगान करने वाली कई कथाएँ प्रचलित हैं। सन् 1930 में दादाजी ने
मध्य प्रदेश के खण्डवा शहर में समाधि ली। यह समाधि रेलवे स्टेशन से 3 किमी की दूरी पर है। इंदौर में श्री दादा जी के भवया संगमरमर का मण्डिर है lदादा दरबार दिल्ली में भी सँगैमेरेर का बना है l जिस का संचालन श्री छोटे सरकार जी ( श्री रामेश्वरदयाल जी) के देख रेख में होता है. श्री छोटे सरकार जी ने अन्य सथानो पर भी श्री दादा दरबार का निर्माण करवाया है. जैसे दिल्ली ,रेसरी(अलीगढ), जलगांव,जबलपुर,
जयपुर ,श्री गंगा नगर,
आगरा आदि l खण्डवा मध्य एवं पश्चिम रेलवे का एक प्रमुख स्टेशन है तथा भारत के हर भाग से यहाँ पहुँचने के लिए ट्रेन उपलब्ध है।