मोनिका अरोड़ा ने कहा कि दिल्ली दंगों की जांच एनआईए ( NIA ) द्वारा की जानी चाहिए। उन्होंने दावा किया कि ये दंगे सुनियोजित थे। उन्होंने कहा कि पुस्तक को आठ अध्यायों और पांच अनुलग्नकों में विभाजित किया गया है, जो दंगा प्रभावित क्षेत्रों में जमीनी रिसर्च पर आधारित हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक के अध्याय भारत में शहरी नक्सवाल और जिहादी थ्योरी, सीएए, शाहीन बाग और अन्य के बारे में हैं।
राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह की BJP में तरक्की, जानें क्या है इसके मायने? दरअसल ब्लूम्सबरी इंडिया को उस समय सख्त आलोचना का सामना करना पड़ा जब शनिवार को किताब के लोकार्पण का एक कथित विज्ञापन सामने आया और इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ( Kapil Mishra ) को दिखाया गया। उत्तर-पूर्वी दिल्ली ( North-East Delhi ) में 23 फरवरी को हिंसा भड़कने के पहले ऐसे आरोप लगाए गए थे कि कपिल मिश्रा समेत कई नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए थे।
इसके बाद ब्लूम्सबरी इंडिया ने एक बयान जारी कर कहा कि वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हिमायती हैं, लेकिन समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को लेकर भी उतने ही सचेत हैं। इस बात की जानकारी मिलने पर कपिल मिश्रा ने कहा कि दुनिया की कोई भी शक्ति इस पुस्तक को बाजार में आने से नहीं रोक सकती है। लोग इसे पढ़ना चाहते हैं और बोलने की स्वतंत्रता के ठेकेदार डरते हैं कि पुस्तक यह उजागर करेगी कि दंगों के लिए प्रशिक्षण कैसे दिया गया था। यह बातें भी खुलकर सामने आ जाएंगी कि दिल्ली दंगा के पीछे दुष्प्रचार तंत्र शामिल कौन-कौन लोग थे।
जेपी नड्डा ने चिराग-नीतीश को दी नसीहत, कहा : एक साथ चुनाव लड़ने में ही है जीत की गारंटी प्रेरणा मल्होत्रा ने कहा कि पुस्तक का उन तथाकथित वामपंथी विचारकों और बुद्धिजीवियों द्वारा विरोध किया गया, जिन्होंने पहले झूठ फैलाया था कि मुसलमानों के खिलाफ नागरिकता कानून था।
सोनाली चितलकर ने कहा कि पुस्तक पूरी तरह से जमीनी शोध का एक परिणाम है। उन्होंने दावा किया कि हमने मुसलमानों सहित सभी से बात की. हम पक्षपाती नहीं हैं। यह किताब शहरी नक्सलियों और इस्लामिक जिहादियों के खिलाफ रुख अपनाती हैं। यह मुस्लिम विरोधी किताब नहीं है।
बता दें कि ब्लूम्सबरी इंडिया फरवरी में हुए दिल्ली दंगों के बारे में ‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ इस साल सितंबर में प्रकाशित करने वाला था। ब्लूम्सबरी इंडिया के इस रुख पर मोनिका अरोड़ा ने कहा कि अगर एक प्रकाशक मना करता है, तो दस और आ जाएंगे। बोलने की आज़ादी के मसीहा इस किताब से डरे हुए हैं।