अब वही वामपंथी पार्टियां तेजस्वी के लिए सियासी मजबूरी बन गई हैं। दरअसल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माले ने महागठबंधन से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए 53 सीटों पर जीत का दावा ठोका है। भाकपा माले के इस दावे को आरजेडी ने खारिज कर दिया है। आरजेडी के इस रणनीति को देखते हुए भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने साफ कर दिया है कि राष्ट्रीय जनता दल अगर 2015 विधानसभा चुनाव के फार्मूले पर सीट शेयरिंग करना चाहता है तो हम उसके लिए तैयार नहीं हैं।
PM Modi ने बिहार में की सौगातों की बारिश, 3000 करोड़ की परियोजनाओं से रेल नेटवर्क को मिलेगी मजबूती इसके बदले दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि सीट शेयरिंग 2020 लोकसभा चुनाव की तर्ज पर होनी चाहिए। अगर इस बात पर गठबंधन नहीं होता है तो उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।
भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि हमारी मांग है कि लोकसभा चुनाव में हुए तालमेल को ही सीट शेयरिंग का आधार माना जाए। जहां तक वामदलों के आपसी सहयोग की बात है, हम तीनों साथ में चुनाव लड़ेंगे।
J P Nadda : पीएम मोदी ने देश को वोट बैंक के दुष्चक्र से बाहर निकाला, विकास की राजनीति की भाकपा माले के इस रुख से आरजेडी नेता तेजस्वी की परेशानी बढ़ गई है। इसकी वजह यह है कि तेजस्वी ने ही वामपंथी दलों को महागठबंधन में शामिल होने की वकालत की थी। साथ ही हम, आरएलएसपी और वीआईपी पार्टी को तवज्जो नहीं दी। अब भाकपा माले ने तेजस्वी से 53 सीटों की मांग कर दी है।
सीट शेयरिंग का मामला के छोटी पार्टियां तक ही नहीं हैं। आरजेडी और कांग्रेस के बीच भी सीट शेयरिंग का मसला नहीं सुलझा है। कांग्रेस के एक बड़े नेता तो यहां तक कह दिया कि हम तो 200 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। जबकि महागठबंधन में उपेन्द्र कुशवाहा और मुकेश सहनी खुद को ठगे महसूस कर रहे हैं।
ये बात अलग है कि बीती रात आरजेडी के युवा नेता तेजस्वी यादव और उपेंद्र कुशवाहा की बैठक पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर हुई थी। सीट शेयरिंग को लेकर दोनों नेताओं के बीच लंबी मंत्रण हुई लेकिन डील फाइनल हुई या नहीं, इसको लेकर कोई जवाब नहीं मिला है।