International Tiger Day 2019 बाघों को रास आने लगा इंसानी माहौल, अब समझौता ही एकमात्र रास्ता
International Tiger Day एक तरफ बाघों की सुरक्षा के लिए पीलीभीत के जंगलों को टाइगर रिजर्व Tiger Reserve घोषित किया गया है, वहीं पर्यटन Tourism के नाम पर जंगलों के अंदर बाघों की प्रदर्शनी लगाई जा रही है।
International Tiger Day 2019 बाघों को रास आने लगा इंसानी माहौल, अब समझौता ही एकमात्र रास्ता
International Tiger Day : पीलीभीत। एक दौर था जब वन्य जीव खुद को जंगल में सुरक्षित महसूम करते थे, पर जंगल में बढ़ती मानव चहलकदमी से आज वन्यजीव जंगल छोड़ आबादी की बीच आने को मजबूर है। इन दिनों पीलीभीत का हाल भी कुछ ऐसा ही नजर आता है। कहने तो पीलीभीत का जंगल टाइगर रिजर्व pilibhit tiger reserve घोषित हो चुका है, फिर भी विभाग के आँकड़ों की मानें तो 8 से 10 बाघ जंगल छोड़ आबादी में घूम रहे है। इसका सबसे बड़ा कारण जंगल मे इंसानी दबाव है।
एक तरफ बाघों की सुरक्षा के लिए पीलीभीत के जंगलों को टाइगर रिजर्व Tiger Reserve घोषित किया गया है, वहीं पर्यटन Tourism के नाम पर जंगलों के अंदर बाघों की प्रदर्शनी लगाई जा रही है। जंगल के अंदर स्थित 5 किलोमीटर के ईको सेंसेटिव जोन को पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित कर दिया गया है, जिससे जंगल के अंदर मानव चहल कदमी बढ़ गई है और बाघ खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। जब बाघों का संरक्षण करना था तो कोर एरिया में पिकनिक स्पॉट क्यों विकसित किया गया, आखिर कौन सी जरूरत आ पड़ी थी जो वन क्षेत्र के भौगोलिक रूप से छेड़छाड़ की गई। वन निगम द्वारा पीलीभीत टाइगर रिजर्व के अंदर मोटर वोट चलाने की भी कवायद शुरू हुई है, विभागीय अधिकारी जल्द ही शारदा सागर डैम में मोटर बोट चलाने की स्वीकृति देने वाले हैं शायद जो बाघों के लिए उचित नहीं है।
फैक्ट फाइल 60279.80: हेक्टेयर है टाइगर रिजर्व का कोर एरिया 12745.18: हेक्टेयर है बफर जोन एरिया 05: कुल रेंज हैं पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 05: किलोमीटर परिधि में हैं ईको सेंस्टिव जोन (भौगोलिक स्वरूप: वन क्षेत्र घोडे की नाल के आकार में हैं। वन क्षेत्र की चौड़ाई 15 किलोमीटर से लेकर कहीं कहीं 3 से पांच किलोमीटर तक है। वन क्षेत्र के समीप 275 गांव आते हैं।
क्या टाइगर रिजर्व के बाद भी मानव को करना पड़ेगा आबादी में बाघों से समझौता? पीलीभीत का जंगल 8 रेंज में बटा हुआ है। रेंजों में बाघ सुरक्षा के लिए जरूरत के हिसाब से स्टाफ़ की कमी है। जरूरत से आधा स्टाफ भी पीलीभीत टाइगर रिजर्व में मौजूद नहीं है, जिससे जंगल से संचालित होने वालों गोरखधंधों को बढ़ावा मिल रहा है। सूत्रों की मानें तो जंगल के अंदर से खास घास, मछली पालन, कटरुआ व अवैध लकड़ी का कटान बड़े पैमाने पर होता है, जिसके किस्से आए दिन वन विभाग द्वारा सुनने को मिलते हैं। वन विभाग के अधिकारियों के आँकड़ो में कुल 8 से 10 बाघ जंगल से बाहर मानव आबादी के करीब घूम रहे हैं, पर ये आंकड़ा शायद नाकामी छुपाने के लिए है। सूत्रों की माने तो 15 से 20 बाघ जंगल से बाहर हैं,जो आये दिन खेतों में देखे जाते है और ये बाघ न खुद सुरक्षित हैं और बाघों की मौजूदगी से मानव जीवन भी सुरक्षित नहीं है। बाघ के हमलों की घटनाएं आम हो गई हैं। टाइगर रिजर्व में बाघ भी सुरक्षित नहीं है। 9 जून 2014 में पीलीभीत के जंगलों को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया जिसके बाद भी कई बाघ और तेंदुआ की जाने गयी।
अब तक मरने वाले बाघों की सूची अक्टूबर 2014 महोफ रेंज में बाघ का शव बरामद किया गया। अप्रैल 2015 में पूरनपुर क्षेत्र में बाघ का शव नहर से बरामद किया गया। जुलाई 2017 में हरदोई ब्रांच में डूबने से हुई थी बाघिन की मौत । मई 2017 माला रेंज में मिले थे दो बाघ शावकों के शव 6 फरवरी 2018 डगा गांव के पास मिला तेंदुआ का शव मार्च 2018 शारदा सागर डैम में उतराता हुआ मिला बाघ का शव अप्रैल 2018 में रजबहा पटरी पर मिला बाघ का शव अप्रैल 2018 महोफ में मिला बाघ का शव 20 मई 2018 रजवाह खारजा नहर की पटरी पर मिला बाघ का सड़ा गला शव । 31 जुलाई 2018 बॉर्डर क्षेत्र के बाजार घाट सुतिया नाला में मिला था बाघ का सड़ा गला शव। 25 जुलाई 2019 पूरनपुर कोतवाली क्षेत्र के मटेहना में ग्रामीण और बाघ के बीच संघर्ष में बाघ की मौत
पांच तेंदुए की हुई मौत फरवरी माह 2018 में बराही रेंज के अंतर्गत डगा बाइफरकेशन मार्ग पर मिला तेंदुए का शव मई में मिला बराही रेंज के अंतर्गत खारजा नहर की पटरी पर मिला तेंदुए का क्षतविक्षत शव 8 नवंबर को बराही रेंज के जंगल में मिला तेंदुए का शव 19अक्तूबर 2018को असम हाइवे पर अज्ञात वाहन की टक्कर में हुई तेंदुए की मौत 20 मार्च 2019 को माधोटांडा के डगा गांव के निकट हरदोई ब्रांच नहर में मिला मादा तेंदुए का शव
इतनी मौतों के बाद भी विभाग सिर्फ निगरानी में जुटा है। जो 15 से 20 बाघ जंगलों से बाहर और मानव आबादी के करीब हैं जिससे मानव आबादी व बाघ दोनों को खतरा है। उनकी सुरक्षा में अब भी लापरवाही की जा रही है। वन विभाग की उदासीनता के चलते अब पीलीभीत जिले की आबादी को इन बाघों के साथ समझौता करना ही पड़ेगा, क्योंकि ये बाघ जंगल लौट नही पाएंगे और न कभी पीलीभीत के 20 गांव बाघ की दहशत से मुक्त हो पाएंगे। तो सिर्फ रास्ता बचता है बाघों से समझौता। अब वन विभाग को जंगल किनारे के वासियों को ट्रेनिंग
देनी चाहिए, जिससे विभागों से अपनी सुरक्षा बिना बाघ को नुकसान पहुंचाए कर सके। जिले के 20 से अधिक गांव में ऐसे हैं जहां लगतार बाघ की लोकेशन मिलती रहती है,कभी खेत में तो कभी घरों से बाघ पशुओं पर झपट कर उन्हें मार देता है, सूचना पर वन्य विभाग पहुँचता है तो सिर्फ निगरानी के लिए क्योंकि पुरानी नीतियों के सहारे बाघों को पकड़ पाना अब मुमकिन नहीं है। टाइगर रिजर्व के लिए एक मोटा बजट सरकार से प्राप्त हुआ पर बाघों की सुरक्षा और जंगल से ज्यादा यह बजट सरकारी कार्यालय को चकाचौंध बनाने के लिए खर्च किया गया।
स्टाफ की कमी एक बड़ी वजह जब भी बाघों की सुरक्षा की बात की जाती है तो अक्सर विभाग के आला अधिकारी स्टाफ की कमी का बहाना बनाते नजर आते हैं पर हकीकत में आलम यह है कि वन दरोगा अब जंगल की नौकरी करने से ज्यादा कार्यालय में बाबू बनना चाहते हैं, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण पीलीभीत टाइगर रिजर्व के कार्यालय में बाबू बनकर काम कर रहे वन दरोगा हैं।
क्या कहते हैं वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बिलाल मियाँ पीलीभीत के रहने वाले बिलाल मियां पेशे से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर हैं। उनसे बातचीत की गई तो हैरतअंगेज बातें सामने आई। बिलाल का कहना है कि पिछली गणना के अनुसार पीलीभीत के जंगलों में बाघों की संख्या 54 से अधिक है जिसमें से कुछ बाघ जंगल से बाहर रास्ता भटक चले गए हैं। गत वर्ष एक बाघिन जंगल से रास्ता भटक कर खेतों की ओर चली गयी थी। बाघिन ने खेतो में ही अपने शावको को जन्म दिया। धीरे-धीरे उस बाघिन का कुनबा बढ़ता चला गया और कुनबे में बाघो की संख्या 5 से 7 हो गयी तो लगातार पीलीभीत के अमरिया में दहशत बनाए हुए हैं। अगर वन विभाग के आला अधिकारियों ने पहले ही मामले की सुध ली होती तो शायद आज अमरिया बाघों की दहशत से मुक्त होता। बिलाल का कहना है कि बाघों की सुरक्षा में लापरवाही की जा रही है। जो बाघ जंगल से बाहर घूम रहे हैं, उन्हें खतरा है। बीते दिनों मानव वन्यजीव संघर्ष मैं एक बाघिन की जान चली गई थी। फिर भी वन विभाग ने सुध नहीं ली है ।वन विभाग को जरूरत है कि जंगल के आसपास के गांव में जा कर लोगों को जागरूक करे कि वन क्षेत्र में ना जाए और बाघ को बिना नुकसान पहुंचाए खुद की सुरक्षा करें।पर ये दावे वन विभाग कागजो में करता है, हकीकत में नहीं। इनपुटः सौरभ दीक्षित
Hindi News / Pilibhit / International Tiger Day 2019 बाघों को रास आने लगा इंसानी माहौल, अब समझौता ही एकमात्र रास्ता