राजगीर के पास नेकपुर गांव में यह वाटर बैंक स्थापित करने की योजना है। जलसंकट से उबरने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय का यह शोध गेमचेंजर साबित हो सकता है। इसकी योजना बनाई जा रही है कि बर्षा का पानी जो यूं ही बर्बाद हो जाता है उसे एक्वीफर में जमा किया जाए। जरूरत के मुताबिक फिर उसे निकालकर उपयोग में लाया जाएगा। यही एक्वीफर जल बैंक के रूप में काम करेगा। स्टोरेज एंड रिकवरी तकनीक का उपयोग कर इसका मॉडल तैयार किया जा रहा है।
पहाड़ों से गिरने वाला पानी होगा संग्रहित
राजगीर के नेकपुर गांव में इसका सर्वे किया जा चुका है। यहां 400 मीटर नीचे बने एक्वीफर को जल बैंक बनाया जाएगा। बर्षा के बाद मेन पहाड़ों से गिरकर बर्बाद हो जाने वाले पानी को यहां पंप के माध्यम से जमा किया जाएगा। गर्मी के दिनों में इसका उपयोग किया जाएगा। पहले चरण में इसका उपयोग सिंचाई के काम में किया जाएगा। बाद में प्यूरीफायर से साफ कर इसका उपयोग पीने के लिए भी किया जाएगा। पेय जल के रूप में उपयोग के पूर्व पानी में मौजूद तत्वों की गहन पड़ताल की जाएगी।
कुलपति का भरोसा
नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति को इसकी सफलता का पूरा भरोसा है। कुलपति प्रो.सुनैना सिंह ने कहा कि एक्वीफर स्टोरेज एंड रिकवरी फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर एक एक्वीफर विचार्ज प्रोजेक्ट है। स्कूल ऑफ ईकोलॉजी एंड एनवायरमेंट स्टडीज के चार जांचकर्ताओं और तीन शोधकर्ताओं की टीम लगातार काम कर रही है। प्रोजेक्ट के सफल होने से जल संकट से मुक्ति मिल जाएगी।
जिलाधिकारी योगेंद्र सिंह ने कहा कि एक्वीफर स्टोरेज एंड रिकवरी फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट का प्रेजेंटेशन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष किया जा चुका है।उन्होंने भी इसे गेम चेंजर माना है।नेकपुर गांव में इसकी शुरूआत की जाने वाली है।नालंदा विश्वविद्यालय को इस काम के लिए हरसंभव मदद किया जाएगा।
जलसंकट का आसान हल
जल बैंक के धरातल पर उतरने से जलसंकट का स्थायी हल निकल आने की उम्मीद सभी को है।हर वर्ष गर्मियों में भूगर्भीय जल के स्तर के नीचे चले जाने से लोगों को पीने और उपयोग में लाने वाले पानी की भारी दिक्कतें उठानी पड़ जाती हैं। जल बैंक इसका स्थायी समाधान निकाल सकता है।