जीरादेई से 4 किलोमीटर दूर है जीरादेई : प्रथम राष्ट्रपति का गांव
मकान बिकने से बचा लिया
प्रसाद परिवार पर बजाज और अनेक साहूकारों का कर्ज इतना था कि पूरी जमींदारी और पुश्तैनी मकान बिक जाने की नौबत आ गई थी। कर्ज मुक्ति के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इसके लिए भी तैयार थे। कांग्रेस के काम पर वे ध्यान नहीं दे पा रहे थे, ऐसे में, महात्मा गांधी ने ऋण मुक्ति के अभियान के लिए सेठ बजाज को जीरादेई भेजा, ताकि राजेन्द्र प्रसाद को वापस कांग्रेस के काम में लगाया जा सके।
गांधी जी के आदेश पर सेठ बजाज काम में लग गए, कर्ज अधिक था, इसलिए उन्होंने सेठ घनश्यामदास बिड़ला (1894-1983) से भी मदद मांगी। तमाम साहूकारों के कर्ज चुकता हो गए। सेठ बजाज ने पुश्तैनी मकान को बचा लिया, प्रसाद परिवार की इज्जत भी बच गई।
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बजाज का बड़प्पन
दूसरों के पैसे तो चुका दिए गए थे, लेकिन बजाज और बिड़ला के पैसे लौटने की गुंजाइश नहीं बन रही थी, बची हुई कुछ जमींदारी कोई खरीदने को तैयार नहीं था, तो सेठ बजाज ने यह काम किया, लेकिन जमींदारी को राजेन्द्र बाबू के छोटे बेटे धनंजय प्रसाद के नाम से ही लिख दिया। योजना यह थी कि बची हुई जमीन से धीरे-धीरे कर्ज और मूल अदा हो जाएगा। सेठ बजाज को राजेन्द्र बाबू अपना बड़ा भाई मानते थे और महात्मा गांधी ने तो सेठ बजाज को एक तरह से गोद ही ले रखा था। सेठ जमनालाल बजाज ने ही वर्ष 1926 में बजाज समूह की नींव रखी थी।