गौरतलब है कि, अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के बाद अरुण और आशा जब दिल्ली लौटे तो वहां उनका जोरदार स्वागत किया गया। इसके साथ ही दिल्ली से समय पर रिजर्वेशन नहीं मिल पाने से उनकी दिवाली रास्ते में ही निकल गई। गुरुवार सुबह 10 बजे बस से पन्ना पहुंचे। यहां न तो उनका स्वागत करने वाला कोई था और न ही उन्हें पहचानने वाला। सामान्य लोगों की तरह ही दोनों खिलाडिय़ों ने अपने-अपने बैग बस से उतारे और ऑटो से अपने गांव जनवार पहुंचे। यहां गांव के लोगों ने उनका स्वागत किया।
ऑटो में ही चर्चा करते हुए आशा और अरुण ने बताया, जिस स्केट बोर्ड में हम प्रैक्टिस करते थे, नानजिंग का स्केट बोर्ड उससे कई गुना बड़ा और गहरा था। इसके बाद भी हम दोनों खिलाडिय़ों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर और कई सालों से प्रैक्टिस कर रहे खिलाडिय़ों के साथ शानदार प्रदर्शन किया। प्रतियोगिता ओपन एजग्रुप में होने के कारण उम्र में दोगुने खिलाडिय़ों के सामने प्रदर्शन करना पड़ा।
इससे वे उनके स्तर का प्रदर्शन नहीं कर पाए। कई सालों से नानजिंग सहित कई शहरों में पै्रक्टिस कर रहे खिलाडिय़ों ने भी दोनों के खेल की तारीफ की। आशा ने बताया, नानजिंग में खेलने के लिए कई देशों से खिलाड़ी आए थे। ऐसे लोग जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी उन्हें भाषा की समस्या हो रही थी। इससे कई खिलाडिय़ों को इशारों में ही सामग्री मांगते देखा गया।
अरुण ने बताया, हमने देखा कि कई देशों के खिलाड़ी काफी फुर्तीले हैं। यदि वे प्रैक्टिस के दौरान कहीं गिर गए तो उसे छोड़ते नहीं हैं, लगे रहते हैं। हमें भी इसी तरह से जुझारूपन के साथ प्रैक्टिस करने के साथ अन्य लोगों को सिखाना है, इससे नए-नए खिलाड़ी निकलने लगेंगे। जनवार स्केट बोर्ड के खिलाडिय़ों की नर्सरी बन जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार सुविधा के साथ ही और भी अधिक प्रैक्टिस करनी होगी, तभी हम प्रतियोगिताओं में जीत हासिल कर सकते हैं।