सावन के पहले सोमवार को इस चमत्कारी अचलेश्वर महादेव की करें पूजा, मान्यता ऐसी पूरी होगी मनोकामना
प्यास बुझाने के लिए सिर्फ बारिश का पानी
अरावली की ऊंची चोटी पर मंदिर के स्थापित होने की वजह से यहां पर पानी के लिए मात्र बरसात का पानी है। पानी का संग्रहण करने के लिए संतों द्वारा पहाड़ी की तोड़कर हौद का निर्माण करवाया गया था। इससे बारिश होने पर पानी सीधा हौद में गिरता है। संचय किए गए पानी को पात्रों में भर कर पेयजल सहित अन्य कार्यों के लिए उपयोग किया जाता है। कई बार पानी खत्म हो जाने पर पांच – छह किलोमीटर नीचे स्थित गांवों से पानी के जरिकेन भर कर जैसे तैसे करके ऊपर पहुंचाया जाता है।
रात्रि को विश्राम की व्यवस्था, सभी को भोजन प्रसादी :
मंदिर पहुंचने के बाद अंधेरा हो जाता है तो श्रद्धालुओं को मंदिर में ही रोका जाता है। भोजन प्रसादी की भी व्यवस्था की जाती है। जंगली इलाका होने के कारण जंगली जानवरों का खतरा हरदम मंडराता रहता है।
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अर्द्धरात्रि को होती है भगवान शिव की पूजा :
जानकारी के अनुसार मंदिर में भगवान शिव की महाआरती अर्द्धरात्रि 3 बजे की जाती है। इसके बाद पुन: शाम को आरती की जाती है।
कठिनाइयों भरा रास्ता
मंदिर तक पहुंचने के लिए कई श्रद्धालु गोरमघाट से होकर आते हैं। गोरमघाट पहुंचने के बाद श्रद्धालु वहां से पैदल पहाड़ी की चढ़ाई शुरू करते हैं। इस रास्ते में न कोई सीढ़ियां हैं और ना ही कोई अन्य साधन। श्रद्धालुओं को कंकर, पत्थरों व कंटीली रास्तों से होकर इस मंदिर तक पहुंचना पड़ता है, जो काफी लंबा है। इसी तरह इस मंदिर में पहुंचने के लिए अन्य रास्ते भी हैं जो काजलवास की धूणी से, जोगमंडी से तथा एक काछबली मंदिर से होकर जाता है।