ऊंचे पड़ाड़, नाला, लटकती चट्टानें और विकट मोड़ जोखिमपूर्ण हैं। बारिश के दौरान अक्सर चट्टानें गिरती है, सुरक्षा दीवारें भी बढ़ते ट्रैफिक दबाव के मुकाबले कमजोर हैं। इसके बावजूद वन विभाग से अनुमति के अभाव में सडक़ पर गिरी चट्टान के टुकड़ों को हटाने और क्षतिग्रस्त दीवार की मरम्मत सहित कोई कार्य नहीं किया जा सकता है।
देसूरी नाल में 23 अगस्त को एसिड से भरा टैंकर पलटने से कार सवार 9 लोगों की मौत के बाद तीन जिलों की विशेष टीम ने देसूरी नाल का निरीक्षण किया। टीम ने 6 घंटे तक 16 किमी. देसूरी नाल की भौतिक स्थिति देखी। इसकी जमीनी रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार को भिजवा दी।
झीलवाड़ा से देसूरी तक राज्य मेगा हाइवे नंबर 16 का अधिकांश हिस्सा वन्यजीव अभयारण्य से होकर गुजरता है। देसूरी नाल के ढलान में 14 घातक मोड़ है जिसमें से 11 मोड़ राजसमंद जिले की सीमा है, जबकि 3 मोड़ पाली जिले में है। सडक़ टेढ़ी-मेढ़ी होने से कुछ जगह तीन से चार फीट चौड़ी सुरक्षा दीवार है, जिससे सडक़ बहुत ज्यादा संकरी हो गई है। नियमानुसार राज्य मेगा हाइवे के किनारे 6 फीट की पगडंडी आवश्यक है, मगर इस मार्ग पगडंडी ही नहीं है। मानक से बहुत ज्यादा और खतरनाक देसूरी नाल का ढलान और तीक्ष्ण मोड़ है। इस तरह देसूरी नाल ढलान में रोड इंजीनियरिंग में कई डिफॉल्ट हैं।
इस देसूरी नाल में दिल दहलाने वाले हादसे हो चुके हैं। वर्ष 2007 में ट्रोला पलटने से उसमें सवार 89 लोगों की मौत हुई थी। दो दिन पहले टैंकर पलटने से वैन सवार नौ जनों की दबने से मौत हुई। आठ-दस घायल होने के हादसे तो आए दिन होते हैं। बावजूद इसके इस रोड की सुध लेने में अब तक लापरवाही बरती गई।