केस-1 : एक लाख रुपए के सवा लाख चुका दिए, परेशान होकर घर छोड़ा
नए बस स्टैंड के निकट गणेश नगर निवासी रतन चंदेल सूदखोर के चंगुल में फंसे हुए हैं। उन्होंने मजबूरी में सूदखोर से एक लाख रुपए दो रुपए ब्याज की दर से उधार लिए थे। पत्नी के गहने गिरवी रखकर सवा लाख रुपए चुका दिए, फिर भी सूदखोर दो लाख रुपए और मांग रहा। फोन पर आए दिन धमकियां मिल रही। यहां तक की घर पर मारपीट और धमकाने वाले भी भेज देता हैं। इससे परेशान होकर वह कई दिन तक घर से गायब रहता है। उसका काम-धंधा छूट गया। रतन का कहना है कि वह मानसिक परेशान हो चुका है।
केस-2 : कई गुना पैसे चुका दिए, फिर भी मिल रही धमकियां
पाली शहर के सरदार पटेल नगर निवासी कमलकिशोर ने एक सूदखोर से किश्तों में मोटरसाइकिल खरीद ली। सूदरखोर ने किश्त जमा होेने की न तो रसीदें दी और न ही मोटरइसाकिल के दस्तावेज। कई दिन तक चक्कर कटाने के बाद सूदखोर उसके घर से जबरदस्ती मोटरसाइकिल उठा ले गया। कारण पूछा तो कहा एक लाख रुपए देेने पर मोटरसाइकिल वापस मिलेगी। सूदखोर ने कमलकिशोर से खाली चेक पर हस्ताक्षर भी करवा लिए थे। चेक के नाम पर भी वह आए दिन धमका रहा। धमकियों से कमलकिशोर परेशान हो गया, लेकिन सूदखोर को पुलिस और कानून का कोई भय नहीं है।
वसूल रहे मनमाना, न हिसाब न बही खाता
मजबूर लोगों का फायदा उठाने में सूदखोर कोई कसर नहीं छोड़ रहे। उन्हें किसी तरह का भय नहीं है। उधार दिए पैसे कई गुना वसूल रहे हैं। इससे सैकड़ों परिवार सदमे में जी रहे हैं। लोग मनमाना ब्याज और उधार चुकाने के चक्कर में घर-परिवार की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे हैं। उधारी चुकाने के कारण कई लोगों को अपनी पैतृ़क संपत्ति बेचनी या गिरवी रखनी पड़ रही है। इतना करने के बाद भी पैसा पूरा चुकता नहीं हो रहा है। इसकी वजह यह है कि सूदखोर न कोई रसीद देते हैँ और न ही कोई हिसाब किताब रखते। इस कारण कितने पैसे का लेनदेन हुआ, इसकी जानकारी पीडि़त व्यक्ति को नहीं रहती।
एक्सपर्ट: शिकायत करें, सूदखोरों पर हो सकती है कड़ी कार्रवाई
सूदखोरी हमारे यहां बडी समस्या है। अत्यधिक ब्याज दरों पर ऋण देकर अवैध रूप से वसूली की जाती है। भारत में ऐसे कानून मौजूद है जिसके जरिए सूदखोरों के खिलाफ राहत प्राप्त की जा सकती है। राजस्थान कृषि ऋण माफी अधिनियम- 1957. इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को कर्ज के बोझ से राहत दिलाना है। सूदखोरी के शोषण से बचाने का यह महत्वपूर्ण कानून है। राजस्थान मनी-लेंडर्स अधिनियम-1963 भी सूदखोरी पर नियंत्रण करने के लिए बनाया है। इसके तहत साहूकारों के पंजीकरण, ब्याज दर की सीमा और ऋण देने के नियम तय हैं। भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872 में यदि किसी अनुबंध का उद्देश्य अवैध है या यह सार्वजनिक नीति के विरुद्ध है तो वह अमान्य माना जाएगा। सूदखोरी के मामले में, अत्यधिक ब्याज दरों वाले अनुबंध गैरकानूनी घोषित किए जा सकते हैं। मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम-2002 भी अवैध तरीकों से अर्जित धन को वैध बनाने की प्रक्रिया पर रोक लगाता है। इसके अलावा भी यदि कोई व्यक्ति सूदखोरी का शिकार हो रहा है तो वह जिला कलक्टर, पुलिस या मानवाधिकार के पास शिकायत कर सकता है। जहां से उसे न्याय दिलाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं। -निखिल व्यास, अधिवक्ता