वहीं, अमरीका ने सिराजुद्दीन हक्कानी पर पांच मिलियन डॉलर का इनाम घोषित किया हुआ है। हक्कानी नेटवर्क को अमरीका ने आतंकी संगठन सूची में शामिल करते हुए प्रतिबंधित भी किया है। इसके बावजूद सिराजुद्दीन हक्कानी पाकिस्तान सरकार के साथ मिलकर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) से वार्ता कर रहा है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में हक्कानी के बढ़ते रुतबे से तालिबान के और खूंखार होने का डर है। इससे न केवल अफगानिस्तान बल्कि, पूरी दुनिया को खतरा हो सकता है।
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विशेषज्ञों के मुताबिक, सिराजुद्दीन हक्कानी और उसका चाचा खलील दुनिया का सबसे दुर्दांत आतंकवादी संगठन हक्कानी नेटवर्क को चलाते हैं। यह एक कट्टर अफगान सुन्नी इस्लामी आतंकवादी संगठन है, जिसे तालिबान का हिस्सा माना जाता है। अमरीका ने 2012 में हक्कानी नेटवर्क को आतंकवादी संगठन करार दिया था।
हक्कानी नेटवर्क के सभी लड़ाके अपने आप में सबसे ज्यादा हिंसक हैं। सत्ता पाने के बाद हक्कानी के और अधिक खूंखार होने की संभावना है। इससे दुनिया में शांति और दयालु बनने का ढोंग कर रहे तालिबान को भी नुकसान पहुंच सकता है। वह खुद ही तालिबान का सर्वेसर्वा बन सकता है, क्योंकि समूह में उसके विरोधी लोग काबुल से निर्वासित जीवन जी रहे हैं। मुल्ला बरादर और मुल्ला यूसुफ तालिबान के दो ऐसे नेता हैं जिनका सिराजुद्दीन हक्कानी से पुरानी दुश्मनी है।
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सिराजुद्दीन हक्कानी के नेतृत्व में ही हक्कानी नेटवर्क पहले से कहीं अधिक खूंखार हुआ। इसी ने काबुल में सबसे पहले हाई-प्रोफाइल आत्मघाती हमलों की सीरीज शुरू की। वास्तव में, हक्कानी नेटवर्क तालिबान का पहला ऐसा धड़ा था जिसने आत्मघाती बम विस्फोटों को अपनाया।
हक्कानी ने आत्मघाती हमलों का तरीका अल कायदा से सीखा और 2004 में उपयोग करना शुरू किया। पिछले दो दशक में काबुल में जितने भी हमले हुए हैं, उनसें से 90 फीसदी में हक्कानी नेटवर्क का हाथ था। हक्कानी और अल कायदा के बीच संबंध आज भी मजबूत हैं। ऐसे में अफगानिस्तान की धरती पर अल कायदा के एक बार फिर मजबूत होने का अंदेशा है।