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जिसकी पैदाइश पर दादी ने नहीं देखा था मुंह, आज उस साइना की सफलता पर झूमता है पूरा देश

आज साइना की सफलता पर पूरा देश भले ही खुशियां मनाता हो, लेकिन उनकी पैदाइश पर उन्हीं के घर में मायुसी का माहौल था।

Nov 21, 2017 / 04:33 pm

Prabhanshu Ranjan

sania nehwal

नई दिल्ली। पीवी सिंधु, किंदाबी श्रीकांत, एचएस प्रणय, समीर वर्मा, सौरभ वर्मा, सात्विक साईराज, ज्वाला गट्टा ये वो नाम हैं, जो आज भारत में किसी परिचय के मोहताज नहीं। ये सभी देश की ओर से बैडमिंटन खेलते हैं। अपने बेहतरीन प्रदर्शन की दम पर ये न केवल अपना बल्कि देश का मान भी बढ़ा रहे है। करोड़ो लोगों के आइकॉन बन चुके इन खिलाड़ियों को या यूं कहे कि बैडमिंटन को भारत में जन-जन तक पहुंचाने की मुहिम में एक खिलाड़ी की बहुत बड़ी भूमिका है। जो यदि भारत को नहीं मिली होती, तो शायद आज इस खेल के प्रति दिवानगी का आलम ऐसा नहीं होता। बैडमिंटन का क्रेज भारत में बढ़ता तो जरूर लेकिन मौजूदा दौर पाने के लिए हमें दो या तीन सालों का और इंतजार करना पड़ता। किसी भी खेल के विकास में खिलाड़ी की महती भूमिका होती है। जब कोई खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करता है तो खेल का विकास स्वत: ही होता जाता है। भारत में बैडमिंटन को लोकप्रिय बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है साइना नेहवाल ने।

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पैदाइश के बाद घर में था मायूसी का आलम
ये वही साइना है, जिनके जन्म पर उनकी दादी नाराज थी। पितृसत्तात्मक समाज में किसी दादी की क्या इच्छा होती है, ये तो आप जानते ही है। साइना की दादी भी अपने परिवार के लिए पोते की उम्मीद पाले बैठी थी। लेकिन जब उन्हें यह खबर मिली कि पोता नहीं पोती का जन्म का हुआ है, तो वे महीनों तक इस पोती से नाराज रही। नाराजगी इस हद तक थी कि उन्होंने इस नवजात बच्ची का मुंह महीनों बाद देखा। इस बात का खुलासा साइना ने खुद एक इंटरव्यू में किया था। इस इंटरव्यू में साइना ने साफ कहा कि जब मैं पैदा हुई थी तो मेरी दादी ने कई महीनो तक मेरा मुहं नहीं देखा क्योंकि वो पोती नहीं बल्कि पोता चाहती थी। खैर भारत की इस सरंजमी पर वो नायाब सितारा मिल चुका था। जिन्होंने सालों की मेहनत के बाद वो मुकाम हासिल किया, जिस पर भारत की सवा सौ करोड़ से भी ज्यादा अवाम को गर्व है।

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हरियाणा के हिसार में हुआ था जन्म
साइना का जन्म 17 मार्च 1990 को हरियाणा के हिसार में हुआ। साइना जाट परिवार से ताल्लुक रखती है। पिता हरवीर सिंह और माता उषा रानी की दूसरी बेटी है साइना। जहां से उन्होंने अपने सफर का आगाज किया। एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लेने के बाद साइना ने यहां तक का सफर तय किया है। साइना के पिता चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्धयालय में काम किया करते थे। पिता हरवीर की देख-रेख में साइना की प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा हरियाणा के हिसार में हुई।

हैदराबाद शिफ्ट हो गया परिवार
सरकारी नौकरी में काम करने वाले साइना के पिता हरवीर सिंह का तबादला हैदराबाद कर दिया गया। जिसके बाद साइना पूरे परिवार के साथ हैदराबाद शिफ्ट हो गई। वहीं से साइना ने अपनी आगे की पढ़ाई की। साइना ने बारहवीं की पढाई हैदराबाद के सेंट एंड कॉलेड से पूरी की। साइना का पढ़ाई के साथ-साथ बैडमिंटन में भी गहरा रूझान बचपन से ही था। यह रूझान स्वभाविक नहीं था। साइना को बैडमिंटन विरासत से मिला है। साइना के पिता हरवीर सिंह और मां उषा रानी भी बैडमिंटन खिलाड़ी रहे है। दोनों ने राज्य स्तर तक बैडमिंटन खेला था।

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पहले कोच नानी प्रसाद ने साइना के प्रतिभा को पहचाना
साइना के बैडमिंटन प्रतिभा को सबसे पहले स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ आंध्रप्रदेश के बैडमिंटन कोच नानी प्रसाद ने पहचाना। तब साइना महज आठ साल की थी। तब साइना का परिवार आर्थिक तंगी से भी जुझ रहा था। उनके पिता के लिए यह सभंव नहीं था कि वो अपनी आधी तनख्वाह आठ साल की बच्ची पर खर्च करें। लेकिन फिर कोच के द्वारा भरोसा जताए जाने के बाद उनके पिता ने उनको सपोर्ट किया। अपने मुश्किल दिनों के बारे में साइना खुद कहती है कि चूँकि मेरे माता पिता खेल की पृष्ठभूमि रही है, इसलिए दोनों ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। जब मैं प्रैक्टिस करती थी तो उन्हें स्टेडियम जाने के लिए 25 किलोमीटर का फासला तय करना पड़ता था। लेकिन मेरे लिए यह काम पापा करते थे और वो रोज मुझे सुबह 4 बजे उठाते और उसके बाद मुझे अपने स्कूटर से स्टेडियम लेकर जाते और मेरे जल्दी उठने के कारण या भी डर रहता था कि नींद के झोकों के कारण कहीं मैं स्कूटर से गिर नहीं जाऊ इसलिए पापा मम्मी को भी साथ ले जाते थे जो पीछे मुझे पकड़ के बैठ जाती थी।

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एस.एम. आरिफ, गोपीचंद और विमल कुमार से पाया प्रशिक्षण
समय अपनी गति से बढ़ रहा था। साइना बैडमिंटन की बुनियादी बातों को जान चुकी थी। अब बेहतर प्रोफेशनल खिलाड़ी बनने के लिए साइना ने द्रोणाचार्य अवार्ड विजेता एस.एम. आरिफ से प्रशिक्षण लिया। इसके कुछ दिनों बाद वे पुल्लेला गोपीचंद की अकादमी से जुड़ गई। जहां से उन्होंने कामयाबी के कई नए किस्से गढ़े। बीच में साइना ने कुछ दिनों तक पूर्व भारतीय बैडमिंटन चैंपियन और राष्ट्रीय प्रशिक्षक विमल कुमार के मार्गदर्शन में भी अभ्यास किया। अभी कुछ दिनों पहले ही साइना फिर से गोपीचंद से जुड़ी है। जहां पीवी सिंधु के साथ इनका अपना अभ्यास करती है।

साइना नेहवाल का करियर ग्राफ
साल 2006 में साइना एशि‍याई सैटलाइट प्रतियोगिता जीत कर खबरों में आई। इसके तीन साल बाद साइना ने 2009 में इंडोनेशिया ओपन में अपनी कामयाबी का परचम लहराया। इसी साल साइना ने सुपर सीरीज़ बैडमिंटन प्रतियोगिता का खिताब अपने नाम किया। वो ऐसा करने वाली भारत की पहली महिला बैडमिंटन खिलाडी बनी। साल 2010 में राजधानी दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेल में उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया। इन शुरुआती सफलताओं के कारण साइना को साल 2009 में अर्जुन पुरस्कार और साल 2010 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार और पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा गया। साइना को साल 2016 में देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म श्री के पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

 

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ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला शटलर
साइना भारत की पहली महिला बैडमिंटन खिलाड़ी है, जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीतने में सफलता हासिल की। साइना 2012 लंदन ओलंपिक में बैडमिंटन में कांस्य पदक जीतने में सफल रही। ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने की बाद उन्हें आध्रप्रदेश की सरकार ने रूपये 50 लाख के इनाम की घोषणा की थी। साइना अपने दमदार प्रदर्शन की दम पर लंबे समय तक विश्व बैडमिंटन रैंकिग में नंबर वन पर रही। नंबर वन का ताज पाने वाली वह भारत की पहली महिला शटलर है। जबकि प्रकाश पादुकोण के बाद दूसरी भारतीय शटलर। इन उपलब्धियों के अलावा वह वर्ल्ड जूनियर बैडमिंटन चैंपियनशिप और सुपर सीरिज टूर्नामेंट जीतने वाली वह पहली भारतीय है।

ओलंपिक में गोल्ड का लक्ष्य
साइना का सफर अभी थमा नहीं है। वो अब भी बैडमिंटन खेल रही है। साल 2017 में वो राष्ट्रीय चैपिंयनशिप में पीवी सिंधु को मात देते हुए चैंपियन बनने का रुतबा हासिल किया। इसके बाद चाइना ओपन में भी वो दूसरे दौर तक पहुंचने में कामयाब रही थी। अब साइना हांगकांग ओपन और दुबई सुपर सीरीज की तैयारी में जुटी है। हालांकि भारत के करोड़ों बैडमिंटन प्रेमियों को उनसे ओलंपिक में गोल्ड की उम्मीद है। जिसके बारे में साइना खुद कहती है कि मै हमेशा से एक ओलंपिक पदक चाहती हूं और भारत के राष्ट्रीय ध्वज को मंच पर हमेशा से उपर जाते हुए देखना चाहती हूं। ऐसे में अब साइना से 2020 टोक्यो ओलंपिक में काफी उम्मीदे है।

 

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