सात साल की उम्र से शुरुआत
चेन्नई के रहने वाले गुकेश ने सात साल की उम्र से शतरंज खेलने की शुरुआत की थी। उनके पिता ईएनटी सर्जन और मां माइक्रो बायोलॉजिस्ट हैं। गुकेश ने पहला बड़ा खिताब 12 साल की उम्र में जीता था। वह अंडर-12 वल्र्ड यूथ चेस चैंपियनशिप में विजेता बने थे।
सफलता के चार सूत्र…
1. गलतियों से सबक
गुकेश को सातवें दौर में फिरोजा अलीरेजा से शिकस्त का सामना करना पड़ा। लेकिन, गुकेश ने अपना मनोबल नहीं टूटने दिया और गलतियों से सबक लिया। गुकेश ने कहा, इस तरह के हार से मुझे ऊर्जा और अच्छा प्रदर्शन करने की प्रेरणा मिलती है।
2. सकारात्मक मानसिकता
किसी भी खिलाड़ी के लिए सकारात्मक मानसिकता के साथ खेलना बेहद जरूरी होता है। टूर्नामेंट में कई उतार-चढ़ाव आने के बावजूद गुकेश ने सिर्फ अपने खेल पर फोकस रखा। उन्होंने कहा, शुरू ही से मेरा पूरा ध्यान प्रक्रिया पर भरोसा करने और सही मानसिकता के साथ अच्छी शतरंज खेलने पर था।
3. बाहरी बातों पर ध्यान ना देना
टूर्नामेंट से पहले नॉर्वे के दिग्गज खिलाड़ी मैगनल कार्लसन ने गुकेश को खिताब का दावेदार नहीं माना था। लेकिन गुकेश ने बाहरी बातों को अनसुना किया। उन्होंने कहा, सच कहूं तो मैंने उनकी बातों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया।
4. खुद पर भरोसा जरूरी
खुद पर भरोसा होना सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है। गुकेश ने कहा, मुझे पहले से ही पता था कि अगर मैं अपनी सर्वश्रेष्ठ स्थिति में हूं, अगर मैं शांत और केंद्रित रहने में कामयाब रहा, तो मैं टूर्नामेंट जीत सकता हूं।
मैं टाईब्रेक खेलने की तैयारी कर रहा था
गुकेश ने खुलासा किया कि वह नाकामूरा के खिलाफ आखिरी बाजी ड्रॉ खेलने के बाद खिताब के लिए टाईब्रेक खेलने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन उनकी किस्मत अच्छी रही कि कारुआना और नेपोमनियाच्ची (8.5 अंक) के बीच खेली गई बाजी भी ड्रॉ रही और वह 9 अंकों के साथ शीर्ष पर रहे। यदि कारुआना और नेपोमनियाच्ची के बीच मैच का परिणाम निकलता तो गुकेश को विजेता के साथ टाईब्रेक खेलना पड़ता।
रंग लाई विश्वनाथन आनंद की मेहनत
युवा खिलाडिय़ों को निखारने का बहुत बड़ा श्रेय पूर्व विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद को जाता है, जिनकी अकादमी में ना सिर्फ गुकेश बल्कि प्रग्गनानंद, निहाल सरीन और रौनक साधवानी जैसे युवाओं ने शतरंज के गुर सीखे। आनंद ने 2020 में सोवियत यूनियन स्टाइल की चेस एकेडमी खोली, जिसका नाम वेस्टब्रिज आनंद चेस एकेडमी है।