शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के नाम पर कई बार बड़े-बड़े हादसे हो जाते हैं। इसके बावजूद भी रैगिंग करने वाले विद्यार्थियों के प्रति नरम रुख रखा जाता है। फिर रैगिंग कैसे रुकेगी? कठोर कार्रवाई नहीं होने के कारण ही रैगिंग नहीं रुक रही।
-निर्मला देवी वशिष्ठ, राजगढ़ अलवर
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कॉलेज में एंटी रैगिंग स्क्वाड सतर्क रहे। यह स्क्वाड लाइब्रेरी, पार्किंग एरिया जैसे स्थानों पर अचानक छापामार कार्रवाई करे, ताकि रैगिंग की घटना को रोका जा सके। विद्यार्थियो को गोपनीय पत्र के माध्यम से भी रैगिंग की जानकारी देने को कहें।
-राधे सुथार, चित्तौडग़ढ़
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रैगिंग के दुष्परिणाम सबको पता हैं। इसके कारण आत्महत्या के मामले भी देखने में आने लगे हैं। इससे बचने के लिए सरकार को कानून का पालन सख्ती से करवाना चाहिए। रैंगिंग एकदम बंद की जानी चाहिए।
-कैलाश चन्द्र मोदी, सादुलपुर, चूरू
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रैगिंग के मामले शिक्षण संस्थान प्रबंधन के गैरजिम्मेदाराना रवैए के कारण बढ़ रहे हैं। रैगिंग लेने वाले विकृत मानसिकता के छात्रों के खिलाफ समय पर कार्रवाई नहीं होती, जिससे उनके हौसले बुलंद रहते हैं। रैगिंग का स्वरूप अब अधिक भयावह व क्रूरतम हो गया है। इसके कारण बहुत से छात्र असमय ही आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठा लेते हैं।
-संजय निघोजकर, धार, मप्र
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रैगिंग के मामले प्रशासनिक उदासीनता और कानूनों के कमजोर प्रवर्तन के कारण जारी हैं। इसे परंपरा मानने की मानसिकता और सीनियर्स की प्रभुत्व की भावना इसे बढ़ावा देती है। शिकायत करने से डरना और जागरूकता की कमी भी मुख्य कारण हैं। रैगिंग रोकने के लिए सख्त कानून लागू करना होगा। साथ ही विद्यार्थियों में जागरूकता बढ़ाने और गुप्त शिकायत तंत्र विकसित करना भी जरूरी है।
-बी. डी. तिवारी, इन्दौर, मप्र
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वरिष्ठ विद्यार्थियों की मानसिकता अक्सर शक्ति प्रदर्शन और दबदबा बनाने की होती है। वे रैगिंग को मनोरंजन या जुड़ाव का साधन मानते हैं। बिना नकारात्मक प्रभावों को समझे, वे रैगिंग जैसी गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं। इससे नए विद्यार्थियों पर दबाव बढ़ता है।
-राजेन्द्र गौड, जोधपुर