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बाहरी ही नहीं, इनडोर वायु प्रदूषण भी बढ़ा रहा है मुश्किल

वायु गुणवत्ता में सुधार और सीओपीडी जैसी बीमारियों को रोकने के लिए बाहरी और इनडोर प्रदूषण पर नियंत्रण बेहद आवश्यक है। इसके लिए सरकार को वाहनों, उद्योगों और बिजली संयंत्रों से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करने की दिशा में सख्त कदम उठाने होंगे।

जयपुरNov 20, 2024 / 10:19 pm

Gyan Chand Patni

डॉ. (कर्नल) एस.पी. राय
पल्मोनरी और स्लीप मेडिसिन, एक्सपर्ट कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल, मुंबई
दिल्ली समेत देश के कई शहरों में बिगड़ती वायु गुणवत्ता एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बनती जा रही है। वाय प्रदूषण न केवल श्वसन और हृदय रोगों को जन्म देता है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी दीर्घकालिक प्रभाव डालता है। हाल ही उच्चतम न्यायालय ने भी इस विषय पर सरकारों को दिशा-निर्देश दिए हैं और सरकारी स्तर पर भी प्रयास जारी हैं। प्रदूषण से निपटने के लिए सिर्फ सरकारी पहलें ही काफी नहीं हैं, बल्कि व्यक्तिगत प्रयास भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
लंबे समय तक इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए सतर्कता और दीर्घकालिक नीतिगत समाधान आवश्यक हैं। वायु गुणवत्ता का तात्पर्य हमारे परिवेश में मौजूद वायु की स्थिति से है, जिसमें पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन और वाष्पशील जैविक यौगिक जैसे प्रदूषकों का स्तर शामिल होता है। विशेष रूप से पीएम 2.5, जो कि बेहद छोटे कण होते हैं, अत्यधिक नुकसानदेह हैं। इनका शरीर के भीतर गहराई से प्रवेश कर जाना और फेफड़ों एवं रक्त प्रवाह तक पहुंच जाना घातक हो सकता है। लंबे समय तक प्रदूषित हवा के संपर्क में रहने से क्राँनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), अस्थमा और इंटरस्टीशियल लंग डिजीज (आइएलडी) जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त, वायु प्रदूषण फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग और स्ट्रोक के जोखिम को भी बढ़ाता है। विशेष रूप से, बुजुर्ग और पहले से श्वसन से जुड़ी समस्याओं से ग्रस्त लोग अधिक खतरे में होते हैं। उनकी बीमारी बढ़ जाती है। सीओपीडी फेफड़े की ऐसी बीमारी है, जिसमें सांस लेने में कठिनाई होती है। इसके मुख्य कारणों में लंबे समय तक सिगरेट के धुएं, वायु प्रदूषण और व्यावसायिक खतरों का संपर्क शामिल है। वायु प्रदूषण न केवल सीओपीडी के जोखिम को बढ़ाता है, बल्कि सीओपीडी से पीडि़त व्यक्तियों में लक्षणों को और अधिक गंभीर बना सकता है। यह फेफड़ों और वायुमार्ग को प्रभावित करता है, जिससे वायु प्रवाह में रुकावट होती है और सांस लेने में कठिनाई होती है। सीओपीडी से पीडि़त व्यक्ति को लगातार खांसी, घरघराहट और सांस फूलने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, ठोस ईंधन का उपयोग और घरेलू रसायनों के कारण इनडोर वायु की गुणवत्ता भी खराब होती है। इन प्रदूषकों के संपर्क को कम करना सीओपीडी मरीजों के लिए आवश्यक है ताकि रोग का बेहतर प्रबंधन किया जा सके और लक्षणों में वृद्धि को रोका जा सके। पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन एक ऐसा व्यापक कार्यक्रम है, जो सीओपीडी सहित श्वसन रोगों से ग्रस्त मरीजों की जीवन की गुणवत्ता को सुधारने के लिए तैयार किया गया है। इसमें व्यायाम, शिक्षा, पोषण परामर्श और मनोवैज्ञानिक सहायता शामिल होती है। इसका उद्देश्य लक्षणों का प्रबंधन, शारीरिक सहनशक्ति में वृद्धि और रोग के प्रकोप को कम करना है। यह मरीजों की फेफड़ों की कार्यक्षमता को सुधारता है।
वायु गुणवत्ता में सुधार और सीओपीडी जैसी बीमारियों को रोकने के लिए बाहरी और इनडोर प्रदूषण पर नियंत्रण बेहद आवश्यक है। इसके लिए सरकार को वाहनों, उद्योगों और बिजली संयंत्रों से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करने की दिशा में सख्त कदम उठाने होंगे। वहीं, व्यक्तिगत स्तर पर भी कई उपाय किए जा सकते हैं- जैसे लोगों को धूम्रपान छोडऩे के लिए प्रेरित करें ताकि निष्क्रिय धुएं से बचाव हो सके। परिवार में धूम्रपान के दुष्प्रभावों पर चर्चा करें। बाहर भारी ट्रैफिक वाले स्थानों पर जाने से बचें और घर पर हल्का व्यायाम करें। घर में धूल-मिट्टी जमा न होने दें और पालतू जानवरों के बालों को साफ रखें। इनडोर एयर प्यूरीफायर का उपयोग करें। प्रदूषित स्थानों पर जाने पर मास्क पहनें। अधिक उम्र के लोगों के हर साल फ्लू और न्यूमोकोकल वैक्सीन लगवा सकते हैं।

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