संकेतों को समझा जाए तो दुनिया नए टकराव के लिए कमर कस रही है। यहां चिंता की वजह सिर्फ यह नहीं है कि रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष खत्म होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते टकराव से हालात बिगडऩे की आशंका भी भविष्य के खतरे की तरफ इशारा कर रही है। इजरायल और यूक्रेन के पक्ष में जहां अमरीका और नाटो देश हैं, वहीं फिलीस्तीन के पक्ष में ईरान, रूस और चीन खड़े हैंं। यूक्रेन युद्ध में उत्तर कोरिया के सैनिक रूस का साथ देने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। तीन साल से चल रहे युद्ध में यूक्रेन ने रूस पर पहली बार अमरीकी मिसाइलें दाग कर मामले को तूल दिया है, इसका असर जल्दी ही दिख सकता है।
अगर तीसरे विश्वयुद्ध के हालात बने तो इसका खमियाजा दुनिया के तमाम देशों को उठाना पड़ेगा। दुनिया की बड़ी ताकतें सीधे-सीधे दो खेमों में बंट गई हैं। भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके अमरीका के साथ भी संबंध अच्छे हैं तो रूस के साथ भी। भारत, इजरायल और ईरान को भी साथ लेकर चल रहा है। आज के हालात में भारत तटस्थ राष्ट्र की भूमिका निभा रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रूस और यूक्रेन की यात्रा कर शांति के सकारात्मक प्रयास कर चुके हैं, पर इस दिशा में अभी सकारात्मक नतीजे आने बाकी हैं।
दुनिया के देशों में आपसी तनाव के हालात में मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए संयुक्त राष्ट्र भी है लेकिन वह भी इस दिशा में नाकाम रहा है। संयुक्त राष्ट्र को न तो रूस-यूक्रेन युद्ध को थामने में सफलता मिली और न ही इजरायल-फिलीस्तीन संघर्ष का तोड़ निकालने में। पिछले 13 महीनों में फिलीस्तीन-लेबनान में 50 हजार से ज्यादा मौतें संयुक्त राष्ट्र की इस विफलता को दर्शाती हैं। दुखद पहलू यह भी है कि तमाम बड़े देशों के आर्थिक हित उन्हें मौन रहने को मजबूर कर रहे हैं। रूस ने अपनी धमकी पर अमल किया तो इसके परिणाम दूसरे विश्वयुद्ध से भी भयावह हो सकते हैं।