- दीप्ति जैन, उदयपुर
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जल के प्राकृतिक स्रोतों को पाटकर ऊंची ऊंची बहुमंजिल इमारतों का निर्माण अल्पकालीन विकास है और दीर्घकालीन विनाश है। अनेक नहरें, नदियां, तालाब और बावडियां विलुप्त हो चुकी हैं। जल संकट बढ़ने का मुख्य कारण जनता की लालच प्रवृति और लापरवाही है । जलसंग्रहण और घने वृक्षों का सीधा सम्बन्ध है। राजनीतिज्ञों को भी वृक्ष बचाओ अभियान चलाना चाहिए।
—मुकेश भटनागर, भिलाई, छत्तीसगढ
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जल संकट बढ़ने का प्रमुख कारण है वर्षा जल संचयन की उपेक्षा एवं व्यर्थ बह रहे जल की रोकथाम के लिए पर्याप्त कारगर कदम न उठाना। ताल-तलैया, नालों को बंद कर या सिकोड़ कर बस्तियां बस जाने को रोकना होगा । पुराने कुएं- बावड़ियों तालाबों, नदियों नालों की ओर ध्यान देना होगा । जल का दुरुपयोग न करें इसके लिए हर व्यक्ति को जागरूक करना होगा।
—भगवती प्रसाद गेहलोत, मंदसौर
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बढ़ती आबादी से पानी की मांग का बढ़ना, जंगलों को काटकर पक्की बस्तियों , कंक्रीट सड़कों से भूजल के रिचार्ज में व्यापक कमी, बढ़ते औद्योगिकीकरण से पर्यावरण को लगातार नुकसान , ये वे मुख्य कारण हैं जो बढ़ते जल संकट के लिए जिम्मेदार हैं।
—विवेक रंजन श्रीवास्तव,भोपाल
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मानव अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए, जिस अंसतुलित रूप से प्रकृति का अति दोहन कर रहा है, प्रदूषण फैला रहा है उससे संतुलित वायुमंडलीय दशाओं में परिवर्तन हों रहा है। उसी परिवर्तन के कारण बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहे हैं, जिससे सूखे और बाढ़ की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
- हनुमान बिश्नोई, सांचौर (राजस्थान)
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हर जगह जमीन को पक्की करना, डामरीकरण, सीमेंटी करण, आदि जल संकट के कारण हैं। इससे बारिश के मौसम में पानी जमीन के अंदर नहीं जा पा रहा है। जमीन का एक बहुत बड़ा भूभाग पानी अवशोषण से वंचित रह रहा है। इसके अलावा पेड़ों की कटाई से भी जल का संकट बढ़ रहा है। कच्ची फर्श को पक्का बनाने के लिए सीमेंट के ब्लॉक को बिछवाना चाहिए, इससे वर्षा जल जमीन में समाहित होगा।
— धनीराम पटेल, सागर मध्य प्रदेश
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जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण पानी की मांग बढ़ती जा रही है। मीठे पानी के स्रोतों की आपूर्ति सीमित है। इससे पानी की कमी की स्थिति पैदा हो गई है। पानी के परम्परागत स्रोत कम वर्षा व बेतरतीब दोहन के चलते खत्म होते जा रहे हैं । इस कारण भूजल स्तर घटता जा रहा है।
- भानुप्रताप मैत्री, रायपुर,छत्तीसगढ़
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पश्चिम राजस्थान में बीहड़ भूमि से वृक्षों को काट दिया जाता है। वहां उपयुक्त जलवायु न होने के पश्चात भी ऐसी फसलों की बुवाई की जाती है जिन्हें पानी की अधिक आवश्यकता होती है। अतः ऐसी परिस्थितियों में अत्यधिक बोरवेल के विस्तार से जल संकट का सामना करना पड़ता है|
— लालचंद भाटिया, सूरतगढ़, श्रीगंगानगर