शिक्षा विभाग में भले ही इस बार तबादले बाद में करने की बात कही गई है, लेकिन दूसरे महकमों में भी तबादला सूचियां बाहर आएंगी तो देखना यह होगा कि क्या सचमुच विभागों ने अपने स्तर पर कोई मापदंड तय किए हैं या फिर डिजायर संस्कृति ही हावी होती दिखेगी। बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर बीच सत्र में तबादलों का राग क्यों शुरू किया जाता है? शिक्षा विभाग में भले ही तबादले देर से होंगे लेकिन दूसरे विभागों के कार्मिक व अफसरों को भी बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का बंदोबस्त करना होता है।
हैरत की बात यह है कि तमाम विभागों की ओर से तबादलों के लिए बाकायदा आवेदन मांगे जाते हैं। हजारों की संख्या में आवेदन भी आते हैं, लेकिन हर बार तबादला आदेश जारी होते हैं तो नीतिविहीन तबादलों की झलक देखने को मिलती है। न तो बरसों से अपने परिवार से दूर एकल महिलाओं की फिक्र होती और न ही गंभीर बीमारी से ग्रसित कार्मिकों व दिव्यांगजनों की। फिक्र होती है तो सिर्फ इस बात की कि किस कार्मिक ने किस स्तर से डिजायर करवाई है। यह तो तब है जब कर्मचारियों के कोड ऑफ कंडक्ट में यह साफ लिखा है कि किसी भी सिफारिश को अनुशासनहीनता की श्रेणी में माना जाएगा। तबादलों की रेलमपेल में हर बार वे कार्मिक वंचित हो जाते हैं जिनकी परिस्थितियां वास्तव में ऐसी है कि उनका तबादला इच्छित स्थान पर किया जाना चाहिए। प्रयोग के तौर पर ही सही, सरकार को इस बार तबादला प्रक्रिया कुछ मापदंड तय करके पूरी करनी चाहिए।
– शरद शर्मा sharad.sharma@in.patrika.com