बीएएनआइ आधुनिक युग के सार को समाहित करने के लिए गढ़ा गया आद्याक्षर शब्द है, जो नेतृत्व और प्रबंधन में बहुत महत्त्व रखता है। इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है और वीयूसीए यानी अस्थिरता (वोलेटिलिटी), अनिश्चितता (अनसरटेनिटी), जटिलता (कॉम्प्लेक्सिटी), अस्पष्टता (एम्बिग्विटी) से एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। यह परिवर्तन हमारी दुनिया के विकास को प्रतिबिंबित करता है, जहां भंगुरता, बेचैनी, गैर-रैखिकता और समझ से बाहर होना ‘न्यू नॉर्मल’ को परिभाषित करता है। आने वाले कुछ आलेख इसी विषय पर केंद्रित होंगे। पर इससे पहले कि हम बीएएनआइ की अवधारणा को समझें, आइए संदर्भ को बेहतर ढंग से समझने के लिए पहले इसके पूर्ववर्ती, वीयूसीए से परिचित हों।
वीयूसीए की अवधारणा 1980 के दशक के अंत में अमरीकी आर्मी वॉर कॉलेज में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद की दुनिया का वर्णन करने के लिए उभरी। यह शब्द वॉरेन बेनिस और बर्ट नैनस की पुस्तक ‘लीडर्स: द स्ट्रैटेजीज फॉर टेकिंग चार्ज’ में लिखा गया था। वीयूसीए यानी अस्थिरता, अनिश्चितता, जटिलता और अस्पष्टता द्ग ऐसे गुण हैं जो किसी स्थिति या स्थिति का विश्लेषण, प्रतिक्रिया या योजना बनाना कठिन बना देते हैं। यह अवधारणा रणनीतिक सोच को आकार देती है और संगठनों के भीतर व्यक्तिगत व समूह व्यवहार दोनों को प्रभावित करती है। यह अक्सर संगठनात्मक विफलताओं से जुड़ी प्रणालीगत व व्यावहारिक विफलताओं की ओर ध्यान आकर्षित करती है और इसलिए प्रबंधन और नेतृत्व में अहम भूमिका निभाती है।
अस्थिरता (वी): यह परिवर्तन की प्रकृति, गतिशीलता और गति से संबंधित है। इसमें परिवर्तनों को प्रेरित करने वाली ताकतें शामिल हैं।
अनिश्चितता (यू): यह विकास के लिए अप्रत्याशितता व क्षमता को रेखांकित करती है, मुद्दों व घटनाओं की जागरूकता पर जोर देती है।
जटिलता (सी): इसमें ताकतों का जटिल जाल शामिल है जो मुद्दों के अंतरसंबंध की देन हो सकता है। यह सुझाता है कि संगठनात्मक संदर्भों में कारण-और-प्रभाव संबंध अक्सर मायावी होते हैं।
अस्पष्टता (ए): यह वास्तविकता की अस्पष्टता और गलत व्याख्या की संभावना को उजागर करती है, जिससे कारण-और-प्रभाव संबंधों के बारे में अनिश्चितता उत्पन्न होती है।
ये तत्व सामूहिक रूप से तय करते हैं कि संगठन वर्तमान और भविष्य की परिस्थितियों को कैसे समझते हैं, और योजना व नीति प्रबंधन के प्रति दृष्टिकोण को क्या आकार देते हैं। यह अवधारणा या तो निर्णय लेने को जटिल बना सकती है या किसी संगठन की सक्रिय रूप से योजना बनाने व प्रगति करने की क्षमता बढ़ा सकती है, इसलिए यह प्रभावी प्रबंधन व नेतृत्व की नींव रखती है। क्या है इस अवधारणा के प्रभाव, यह कैसे एक प्रबंधक को सफल और प्रभावशाली नेतृत्व में मदद करती है? इसे समझने से कैसे एक लीडर अपने और अपने संगठन को लक्ष्य की ओर समग्र रूप से अग्रसर कर सकता है? इन सभी विषयों पर हम अगले कुछ आलेखों में चर्चा करेंगे।