गुलाब कोठारी ने इस लेख के जरिए वर्तमान परिदृश्यों में विवाह जैसी परंपरा को समझाने का सुंदर प्रयास किया है। आज के दौर के युवा विवाह को भी सिर्फ कर्तव्य बोध मानकर देह सुख से जोड़कर ही चलतेे हैं। बढ़ते तलाक इसी की परिणति साबित हो रहे हैं। जबकि विवाह तो ऐसा संस्कार है जिसमें मृत्यु के बाद भी पति और पत्नी कहीं न कहीं उससे जुड़े रहते हैं। युवा पीढ़ी को इसे पूरी तरह से समझना होगा, तभी विवाह संस्कार साकार रूप धारण कर सकेगा।
गौरव उपाध्याय, ज्योतिषाचार्य, ग्वालियर
लेख भारतीय समाज में विवाह और पुनर्विवाह के विचारों पर आधारित है, जो स्त्री के जीवन में संतान के महत्त्व को भी रेखांकित करता है। भारतीय संस्कृति में संतान के साथ मां का एक अनूठा संबंध होता है, जो स्त्री के जीवन को आगे बढ़ाता है और उसे पुनर्विवाह से रोकता है। हमारे समाज में विवाह और संतान केवल सामाजिक व्यवस्था नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है। लेख समाज के उन मूल्यों पर प्रकाश डालता है, जो पीढ़ियों से हमारी संस्कृति में रचे-बसे हैं। यह लेख एक व्यापक दृष्टिकोण से भारतीय पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों को उजागर करता है।
मनोज कुमार राय, छिंदवाड़ा
कोठारी ने लेख में आत्मा और शरीर के संबंधों का जो आध्यात्मिक और लौकिक वर्णन किया है, वह एक मन के प्रति अप्रतिम आदर प्रस्तुत करता है। लेख वास्तव में बोधगम्य और ज्ञानवर्धक है। लेख आज की युवा पीढ़ी को सोचने के लिए अवश्य विवश करेगा जो आज की विकृत होती अपसंस्कृति में स्त्री को देह सुख का साधन मानता है। उसे एक नारी में सर्वगुण दिखाई ही नहीं देते
डॉ. चन्द्रिका प्रसाद चंद, वरिष्ठ साहित्यकार, रीवा
सनातन काल से ही ऋषि मुनियों ने अपने तप बल से की गई शास्त्रों की रचना में बताया है कि मानव शरीर अर्धनारीश्वर है। एक पुरुष व स्त्री के मिलन को धर्म संस्कृति में शादी कहा गया है अर्थात पति पत्नी । दोनों में से किसी एक का शरीर विच्छेद हो जाने पर शरीर का विच्छेद हो जाता है आत्मा का नहीं, इसलिए पति पत्नी के सम्बंध को जन्मों जन्मों का साथ बताया है। लेख में सही कहा है कि आजकल युवा विवाह को पाश्चात्य संस्कृति अपनाते हुए एक अनुबंध मानकर कुछ साल बाद अलग हो जाते हैं। फिर से नया साथी ढूंढ लेते हैं, जो वंशज नहीं देते, केवल स्वच्छंद जीवन जीने व मौज को ही प्रधानता देते हैं ।
रवि जैन, ज्योतिषाचार्य, रतलाम
आधुनिक जीवन शैली ने रिश्तों की मिठास को कम कर दिया है। लेखक ने उचित लिखा है कि यदि विवाह के पूर्व सारे वैवाहिक अनुभव प्राप्त हो जाते हैं तो फिर विवाह के उपरांत उन अनुभवों का कोई मूल्य नहीं रह जाता। भारतीय संस्कृति में विवाह को आत्मा से आत्मा का संबंध माना गया है और यह आत्मिक संबंध तभी संभव है जब दोनों पक्ष आत्मिक रूप से परस्पर जुड़े।
डीएल सोनी, सेवानिवृत स्टेनो सहकारी बैंक, तिली, सागर
लेख में वैवाहिक संबंधों की बहुत ही सुंदर व्याख्या की गई है। उन्होंने बिलकुल ठीक लिखा है कि भारतीय परंपरा से किया गया विवाह के बाद शरीर दूर रह सकते हैं, लेकिन विवाह सूक्ष्म स्तर पर आत्माओं का- प्राणों का होता है।
किशोर पटेल, देवनारायण भक्त मंडल अध्यक्ष, खंडवा